सुप्रीम कोर्ट का विदेशी चिकित्सा स्नातकों से जुड़ी याचिका पर केंद्र से जवाब तलब
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने कोविड-19 महामारी या रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण छूटी प्रैक्टिकल कक्षाओं की भरपाई के लिए विदेशी चिकित्सा स्नातकों के वास्ते अतिरिक्त वर्षों की इंटर्नशिप अनिवार्य करने संबंधी नोटिस के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करने पर मंगलवार को सहमति जताई। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने केंद्र सरकार और अन्य को नोटिस जारी कर याचिका पर छह हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।
अधिवक्ता जुल्फिकार अली पीएस के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता विदेशी चिकित्सा स्नातकों का एक पंजीकृत संगठन है। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पीवी दिनेश ने कहा कि यह मुद्दा केवल उन लोगों तक सीमित है, जो रूस-यूक्रेन युद्ध या महामारी के कारण भारत लौट आए थे, लेकिन अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए फिर से यूक्रेन या चीन चले गए और उन्होंने अपनी इंटर्नशिप भी पूरी कर ली है।
याचिका में कहा गया है कि विदेशी संस्थानों में मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के बाद छात्रों के पास विदेश में प्रैक्टिस करने या भारत लौटने का विकल्प होता है, जहां वे राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड की ओर से आयोजित विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) में सफल होने के बाद प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। इसमें कहा गया है कि छात्रों ने ऑनलाइन कक्षाओं के जरिए अपना पाठ्यक्रम पूरा किया था, जिसके साथ उन्होंने ऑफलाइन व्यावहारिक और नैदानिक प्रशिक्षण भी हासिल किया था।
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इसमें राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) को सभी राज्य चिकित्सा परिषदों को उन विदेशी चिकित्सा स्नातकों की पहचान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया, जिनकी प्रैक्टिकल कक्षाएं या तो महामारी या फिर युद्ध के कारण छूट गईं या कम संख्या में आयोजित की गईं। याचिका में कहा गया है कि ऐसे विदेशी चिकित्सा स्नातकों को छूटी हुई प्रैक्टिकल कक्षाओं की भरपाई या तो अपने मूल संस्थान से पूर्णता प्रमाणपत्र के साथ या भारतीय संस्थान में प्रतिपूरक प्रायोगिक कक्षाओं के साथ करने की अनुमति दी जानी चाहिए।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta