भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को लेकर एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार से एक ऐसा सवाल पूछा, जिसने देशभर में चर्चा छेड़ दी है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, 'क्या सरकार हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने के लिए तैयार है?' यह सवाल वक्फ संशोधन कानून के उस प्रावधान पर केंद्रित था, जो केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देता है।
वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025: क्या है विवाद?
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को 8 अप्रैल, 2025 से लागू किया गया है। यह कानून वक्फ बोर्डों के प्रबंधन में पारदर्शिता, समावेशिता और जवाबदेही बढ़ाने का दावा करता है। इसके प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
गैर-मुस्लिमों की भागीदारी: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की अनुमति।
वक्फ संपत्तियों का डिनोटिफिकेशन: अदालतों द्वारा वक्फ घोषित संपत्तियों को अवर्गीकृत करने की शक्ति।
कलेक्टर की भूमिका: वक्फ संपत्तियों के विवादों में कलेक्टर को निर्णय लेने का अधिकार।
महिलाओं के अधिकार: वक्फ संपत्तियों में महिलाओं को अधिक अधिकार प्रदान करना।
हालांकि, इन प्रावधानों को लेकर कई संगठनों, राजनीतिक दलों और व्यक्तियों ने आपत्ति जताई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB), जमीयत उलेमा-ए-हिंद, AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस विधायक आरिफ मसूद, और तमिल अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेट्ट्री कषगम (TVK) समेत कई पक्षों ने इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इनका दावा है कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और 26 (धार्मिक संस्थाओं को स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या हुआ? : 16 अप्रैल, 2025 को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार, और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने 72 याचिकाओं पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान केंद्रित किया:
वक्फ बाय यूजर की मान्यता: 'वक्फ बाय यूजर' एक ऐसी प्रथा है, जिसमें लंबे समय तक किसी संपत्ति का धार्मिक या धर्मार्थ उपयोग होने पर उसे वक्फ घोषित किया जाता है, भले ही इसके लिए कोई लिखित दस्तावेज न हो।
नए कानून में इस अवधारणा को हटाने का प्रावधान है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई। कोर्ट ने कहा कि कई लोगों के पास ऐसे वक्फ को पंजीकृत करने के लिए दस्तावेज नहीं होते, और इसे खत्म करने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
कोर्ट ने प्रस्ताव दिया कि जब तक इस कानून की वैधता पर फैसला नहीं हो जाता, 'वक्फ बाय यूजर' सहित सभी वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई नहीं किया जाना चाहिए। आज भी कोर्ट इस मामले में सुनवाई करेगी।
गैर-मुस्लिमों की भागीदारी: कोर्ट ने केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के प्रावधान पर सवाल उठाया। कोर्ट ने पूछा कि अगर वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम शामिल हो सकते हैं, तो क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल करने की अनुमति दी जाएगी?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वक्फ परिषद में दो से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे, लेकिन कोर्ट ने गणितीय असंतुलन पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि अगर 22 सदस्यों में केवल 8 मुस्लिम होंगे, तो गैर-मुस्लिम बहुमत में होंगे, जो संस्था के धार्मिक स्वरूप के खिलाफ हो सकता है।
न्यायिक निष्पक्षता पर बहस: सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने सभी हिंदू जजों की बेंच की निष्पक्षता पर सवाल उठाने की कोशिश की, जिस पर कोर्ट ने कड़ा जवाब दिया। कोर्ट ने कहा, "जब हम बेंच पर बैठते हैं, तो हम अपनी व्यक्तिगत पहचान छोड़ देते हैं। सभी पक्ष हमारे लिए समान हैं।"
कोर्ट ने यह भी पूछा कि अगर वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल किया जा सकता है, तो हिंदू मंदिरों की सलाहकार समितियों में गैर-हिंदुओं को क्यों नहीं शामिल किया जाता?
अंतरिम आदेश का प्रस्ताव: सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने का प्रस्ताव दिया, जैसे कि वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई करने की शक्ति और कलेक्टर द्वारा सरकारी भूमि तय करने का अधिकार। हालांकि, केंद्र सरकार ने इसका विरोध किया और विस्तृत सुनवाई की मांग की।
कोर्ट ने फिलहाल कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं किया और मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रखी।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल क्यों महत्वपूर्ण है? सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल न केवल कानूनी, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह सवाल निम्नलिखित बिंदुओं को उजागर करता है:
धार्मिक समानता: कोर्ट ने केंद्र से यह पूछकर कि क्या हिंदू ट्रस्टों में मुसलमान शामिल हो सकते हैं, धार्मिक समानता और पारस्परिकता का मुद्दा उठाया। यह सवाल सरकार को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का नियम अन्य धार्मिक संस्थानों पर भी लागू हो सकता है।
संवैधानिक अधिकार: याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता और समानता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। कोर्ट का रुख इस बात की ओर इशारा करता है कि वह इन अधिकारों की रक्षा के लिए गंभीर है।
सामाजिक संवेदनशीलता: वक्फ संपत्तियां मुस्लिम समुदाय की धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस कानून को लेकर देशभर में तीखी बहस छिड़ी है, और कोर्ट का फैसला सामाजिक सौहार्द पर भी असर डाल सकता है।
केंद्र सरकार का रुख: केंद्र सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ प्रशासन में पारदर्शिता और समावेशिता लाएगा। सरकार के अनुसार, देशभर में 31,000 से अधिक वक्फ से संबंधित मामले लंबित हैं, और नए प्रावधान इन विवादों को सुलझाने में मदद करेंगे। सरकार ने यह भी कहा कि कई मुस्लिम समुदाय के लोग वक्फ बोर्डों की मनमानी से परेशान हैं, और यह कानून उनके अधिकारों की रक्षा करेगा।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के तर्कों पर सवाल उठाए, खासकर 'वक्फ बाय यूजर' को हटाने और गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के प्रावधानों पर। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अगर ऐतिहासिक रूप से मान्यता प्राप्त वक्फ संपत्तियों को डिनोटिफाई किया जाएगा, तो यह अतीत को फिर से लिखने जैसा नहीं होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया है। कोर्ट ने पक्षकारों से पूछा है कि क्या इस मामले को हाईकोर्ट में सुना जा सकता है, लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस कानून का देशव्यापी प्रभाव है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट को ही इसकी सुनवाई करनी चाहिए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा सकता है, ताकि वक्फ संपत्तियों की स्थिति यथावत रहे। यह मामला न केवल कानूनी, बल्कि राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी संवेदनशील है, और इसका फैसला देश के धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल कि क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुसलमानों को शामिल किया जाएगा, न केवल वक्फ संशोधन अधिनियम की वैधता पर बहस को तेज करता है, बल्कि धार्मिक समानता और संवैधानिक अधिकारों के व्यापक मुद्दों को भी सामने लाता है। यह मामला भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और धार्मिक सह-अस्तित्व की भावना को परखने का एक अवसर है।