मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा
बम फेंक दो चाहे विश्वविद्यालय पर
बना दो होस्टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर
मेरा क्या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा
ये लोकप्रिय कवि
अवतार सिंह पाश की अपने जमाने की एक कविता है... जो इंदौर के शासकीय ललित कला संस्थान के उजड़े हुए आंगन में अब भी प्रासंगिक बनकर गूंज रही है। यहां ध्वस्त कर दी गई इस ऐतिहासिक इमारत के अवशेष कैनवास में तब्दील हो गए हैं। पत्थरों पर रंग गा रहे हैं, उन पर हरी पत्तियां उग रही हैं, मलबे से नीले, लाल, पीले और गुलाबी रंगों की सौंधी खुश्बू आ रही है। पाश की ठीक इस कविता की तरह यहां मलबे में पड़े पत्थरों पर तमाम रंगों के फूल उग रहे हैं, घांस उग रही है और यहां बिखरे हुए रंग इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मेरा क्या करोगे, मैं रंग हूं, आपकी अराजकता से फैली जर्जरता और मलबे में खिल आऊंगा...
आखों के सामने उजड़ी पाठशाला : दरअसल, इंदौर के शासकीय ललित कला संस्थान की इमारत को ध्वस्त कर दिया गया है, नगर निगम प्रशासन यहां कला संकूल बनाया जा रहा है, जिसका एक हिस्सा बनकर तैयार भी हो गया है। लेकिन यहां रंगों का क ख ग सीखकर देश दुनिया में अपना नाम कमाने वाले कलाकार भावुक हैं, क्योंकि रंगों की उनकी पाठशाला उनकी आंखों के सामने उजड़ गई है। अपने अतीत की याद के हरएक अवशेष को सहेजने के लिए उन्होंने पत्थरों पर रंग उकेर मलबे को अपना कैनवास बना डाला। यहां गुरुवार को ललित कला संस्थान के पूर्व कला छात्रों ने पत्थरों पर कलाकृतियां उकेर कर यहां पसरे संस्थान के मलबे को भी अपना खूबसूरत कैनवास बना डाला। इस अनुठे और रचनात्मक काम को कलाकारों ने lost echo नाम दिया है।
ये दिग्गज कलाकार निकले संस्थान से : ललित कला संस्थान का इतिहास कला की दृष्टि से बेहद खास है। संस्थान की बैच में एमएफ हुसैन, रामकृष्ण खोत, नारायण श्रीधर बेंद्रे जैसे कलाकारों ने रंग लगाना सीखा और पूरी दुनिया में अपना और इंदौर का नाम रौशन किया। इंदौर के इस कला संस्थान की ख्याती पूरे देश में आज भी है। हालांकि बाद में कई दूसरे कलाकार यहां से निकले और अपनी अपनी विधा में बेहद खूबसूरत काम कर रहे हैं। हुसैन को तो इतना लगाव था अपने कॉलेज से कि वे जब भी इंदौर आते थे अपने कॉलेज में माथा टेकने जरूर जाते थे। बाद में यहां से डीजे जोशी और श्रेणिक जैन जैसे ख्यात चित्रकार भी पढ़कर निकले हैं।
छात्र नहीं बचा सके अपना संस्थान : बता दें कि बाद में यहां से पढकर निकलने वाले छात्रों ने अपने इस संस्थान को बचाने के लिए कई अभियान चलाए और लड़ाई लड़ी, लेकिन प्रशासन की योजनाओं के सामने कलाकारों की संवेदनाएं दम नहीं भर सकीं और अंतत: संस्थान ढहा दिया गया। संस्थान की इमारत को श्रद्धांजलि देने के लिए कलाकार मलबे पर कलाकृतियां बना रहे हैं। 19 अप्रैल तक कलाकार मलबे पर कलाकृतियां बनाएंगे। इसमें करण सिंह, हिरेंद्र शाह, रमेश खेर, भूपेंद्र उपरेरिया, सुंदर गुर्जर, अरविंद बैस, अमित माह्त्रे, नवनीत माह्त्रे, विशाल भुवानिया, सोनाली चौहान, सूरज रजक, योगेश कसेरा, जयप्रकाश चौहान, प्रदीप कनिक, रचना शेवगेकर, मोहन विश्वकर्मा, विजय काले, अभिषेक सालुंके, अंकित पुन्यासी समेत 100 से ज्यादा कलाकारों ने अपनी पेंटिंग पत्थरों पर उकेरी।
प्रशासन ने छात्रों को छला, अब किराये पर चल रहा अस्थाई भवन : बता दें कि करीब 12 साल पहले ललित कला संस्थान को मरम्मत के नाम पर खाली कराया गया था और अस्थाई विकल्प के तौर पर स्कीम नंबर 78 में बालभवन की इमारत दी गई, इस भवन का किराया आईडीए को देना पड़ता है। कलाकार
अवधेश यादव, सतीश नारायणिया, जीतेंद्र व्यास, मनीष तगारे और
मोहित भाटिया आदि कई छात्रों का कहना है कि प्रशासन ने हमें छला है। ललित कला भवन की सिर्फ छत ही खराब थी, जिसे सुधारकर यहीं से कॉलेज संचालित किया जा सकता था, लेकिन मरम्मत के नाम पर खाली कराकर इसे ढहा दिया गया।
पूर्वजों को याद कर रहे छात्र : हालांकि अपने पूर्वज कलाकारों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए नए और पूर्व छात्र आज भी प्रतिबद्ध हैं। फिलहाल यहां ये छात्र देवलालीकर कला विथिका में यहां से निकलने वाले छात्र एमएफ हुसैन, चंद्रेश सक्सेना, डीजे जोशी, जीके पंडित, माधव शांताराम रेगे, एनएस बेंद्रे, विष्णु चिंचालकर, वसंत आगाशे और श्रेणिक जैन जैसे कालाकारों की पेंटिंग एक्जिबिट कर उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि दे रहे हैं। देवलालीकर कला फाउंडेशन के मनीष रत्नपारके, अतुल पुराणिक, अवधेश यादव, सतीश नारायणिया, जीतेंद्र व्यास, मनीष तगारे, मोहित भाटिया, रूचि भाटिया, सतीश भाईसारे, प्रशांत पाटीदार, गोविदंम, कदम लोदवाल, नारायण पाटीदार, रोहित जोशी आदि वर्तमान और पूर्व छात्रों ने मिलकर प्रणति शीर्षक से प्रदर्शनी आयोजित की है। यह प्रदर्शनी 3 दिन 18, 19 और 20 अप्रैल तक चलेगी।
क्या है संस्थान का इतिहास : ललित कला संस्थान के संस्थापक डीडी देवलालीकर हैं। इस संस्थान का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया। जबकि कला विथिका भी देवलालीकर जी के नाम पर रखी गई। इसकी स्थापना 1927 में होलकर शासनकाल में हुई थी। 18 अप्रैल को देवलालीकर जी का जन्मदिन है। जन्मदिन की पूर्व संध्या पर कॉलेज के पूर्व छात्र परिसर में एकत्र हुए थे। 2027 में कॉलेज के 100 साल पूरे हो जाएंगे। पूर्व छात्रों का कहना है कि कम से कम तीन सालों में नई बिल्डिंग कॉलेज के लिए उसी स्थान पर नगर निगम बनाकर दे, तो हम परिसर में बड़ा समारोह आयोजित कर सके।