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Written By WD Sports Desk
Last Modified: बुधवार, 16 अप्रैल 2025 (18:03 IST)

सुरुचि सिंह: हवलदार की बेटी मुक्केबाजी के गढ़ से निशानेबाजी में लहराई परचम

सुरुचि सिंह: हवलदार की बेटी मुक्केबाजी के गढ़ से निशानेबाजी में लहराई परचम - Suruchi Singh From the stronghold of boxing, she hoisted the flag of shooting
हवलदार इंदर सिंह चाहते थे कि उनकी बेटी सुरुचि पहलवान बने, क्योंकि वह अपने चचेरे भाई और डेफलंपिक्स में कई स्वर्ण पदक जीतने वाले वीरेंद्र सिंह उर्फ ‘गूंगा पहलवान’ की लोकप्रियता और आभा से प्रभावित थे। सुरुचि हालांकि अपने पिता के विचार से उत्साहित नहीं थी। इसने उनके पिता को ऐसे खेल की तलाश करने के लिए प्रेरित किया जो उनकी बेटी की ‘असली क्षमता’ के साथ न्याय कर सके।
 
इस खिलाड़ी की जिंदगी में बड़ा पल तब आया जब 13 साल की उम्र में निशानेबाजी में हाथ आजमाने के लिए उन्हें भिवानी भेजा गया। भिवानी को भारतीय मुक्केबाजी का गढ़ माना जाता है जहां से विजेंदर सिंह और हवा सिंह जैसे मुक्केबाजों ने दुनिया भर में नाम कमाया था।
 
सुरुचि को गुरु द्रोणाचार्य निशानेबाजी अकादमी में दाखिला दिलाया गया, जिसे कम लोकप्रिय कोच सुरेश सिंह चलाते है।

अब 18 साल की हो चुकी इस निशानेबाज ने पेरू के लीमा में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में दो ओलंपिक पदक विजेता मनु भाकर को पछाड़कर आईएसएसएफ विश्व कप में अपना लगातार दूसरा स्वर्ण पदक जीता। मनु को रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
 
झज्जर की सुरुचि अब निशानेबाजी में देश की सबसे होनहार खिलाड़ियों में से एक है।
 
बेटी की निशानेबाजी करियर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सेना से सेवानिवृत्ति लेने वाले इंदर ने कहा, ‘‘मैंने कहीं पढ़ा था कि सुरुचि पहलवान बनना चाहती थी। दरअसल, यह विचार मेरे चचेरे भाई ‘गूंगा पहलवान’ के कुश्ती में सफलता को देखकर आया था। वह हमारे ही गांव का है और उसने कुश्ती में बहुत कुछ हासिल किया है।’’


उन्होंने कहा, ‘‘वह बचपन से ही निशानेबाजी में अच्छा करना चाहती थी और इसी वजह से वह इतनी आगे बढ़ सकी है।’’
 
इंदर ने यह सुनिश्चित किया कि कोविड-19 दौरान भी उनकी बेटी का अभ्यास प्रभावित ना हो।
 
यह सब उनके गांव सासरोली में एक निशानेबाजी परिसर की बदौलत संभव हुआ। कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे अनिल जाखड़ द्वारा संचालित यह परिसर उनके घर के बहुत करीब था और महामारी के कारण सुरुचि को जब भिवानी से वापस अपने गांव आना पड़ा, तब यह उनके लिए वरदान की तरह साबित हुआ।
 
जाखड़ ने कहा, ‘‘मुझे वह दिन याद है जब सुरुचि के पिता उसे मेरी रेंज (कारगिल शूटिंग अकादमी) में लेकर आए थे। उनका घर मेरी अकादमी से कुछ ही दूरी पर है। उसके पिता बहुत प्रतिबद्ध थे। वह चाहते थे कि सुरुचि मनु भाकर जैसी एक कुशल निशानेबाज बने।’’
कारगिल युद्ध के दौरान गंभीर रूप से चोटिल होने वाले जाखड़ महू (इंदौर) में ‘आर्मी मार्क्समैनशिप यूनिट’ में चले गए। उन्होंने सेना से सेवानिवृत होकर निशानेबाजी परिसर की शुरुआत की।
 
जाखड़ ने कहा, ‘‘मैंने उसे लंबे समय तक प्रशिक्षित किया है। वास्तव में मनु ने भी मेरे साथ अभ्यास किया है।’’
 
महामारी के खत्म होने के बाद सुरुचि ने फिर से भिवानी में अभ्यास शुरू कर दिया।
 
इंदर ने कोविड-19 महामारी के दौरान जाखड़ की मदद की सराहना करते हुए कहा, ‘‘सुरुचि ने बहुत मेहनत की है और उसे हमारा पूरा समर्थन प्राप्त है। मैं उसका पहला कोच था, जिसके बाद भिवानी में सुरेश उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं।’’
 
उन्होंने कहा, ‘‘उस कठिन दौर में जब सभी अकादमियां बंद थीं, यह हमारे घर के सबसे करीब था... यह गांव में था, इसलिए वह बिना किसी बाधा के अपना प्रशिक्षण जारी रख सकती थी।’’
 
इस 18 वर्षीय निशानेबाज ने मनु और दुनिया के कई शीर्ष निशानेबाजों को मात दी, तो क्या सुरुचि के लिए ओलंपिक में सफलता के बारे में सपने देखना शुरू करने का समय आ गया है?
 
उनके पिता ने कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि अगर उसने इतनी मेहनत की है, तो उसे निश्चित रूप से पुरस्कार मिलेगा... सफलता का फल चखना होगा। हर बच्चा ओलंपिक, राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों की सफलता का सपना देखता है।’’  (भाषा)
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