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Written By WD Feature Desk
Last Updated : गुरुवार, 24 अप्रैल 2025 (18:35 IST)

पहलगाम का वह मंदिर जहां माता पार्वती ने श्री गणेश को बनाया था द्वारपाल, जानिए कौन सा है ये मंदिर

पहलगाम का वह मंदिर जहां माता पार्वती ने श्री गणेश को बनाया था द्वारपाल, जानिए कौन सा है ये मंदिर - pahalgam hindu temple
mamleshwar mahadev temple pahalgam: पहलगाम हाल ही में एक दुखद घटना का शिकार हुआ है। मंगलवार को हुए एक आतंकी हमले में 28 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इस हृदयविदारक घटना से पूरे देश में शोक की लहर है। पहलगाम, अपनी प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्व के बावजूद, आतंकवाद की छाया से मुक्त नहीं रह सका है।

कश्मीर की शांत वादियों में, जहाँ ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़ आकाश को छूते हैं और लिद्दर नदी अपनी मधुर ध्वनि से वातावरण को संगीतमय बनाती है, बसा है पहलगाम। अपनी अद्भुत प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध इस स्थान पर एक ऐसा प्राचीन और रहस्यमयी मंदिर भी स्थित है, जो इतिहास और पौराणिक कथाओं का अद्भुत संगम है। यह मंदिर है ममलेश्वर महादेव मंदिर (Mamleshwar Mahadev Temple), जो न केवल अपनी आध्यात्मिक महत्ता के लिए जाना जाता है, बल्कि उस अनोखी कथा के लिए भी प्रसिद्ध है, जहाँ माँ पार्वती ने भगवान गणेश को अपना द्वारपाल बनाया था।

ममलेश्वर महादेव मंदिर, पहलगाम : यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और यह पहलगाम के पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है। मंदिर का शांत वातावरण और चारों ओर फैली प्राकृतिक सुंदरता भक्तों को एक अद्भुत शांति का अनुभव कराती है। पत्थरों से निर्मित यह प्राचीन मंदिर अपनी सादगी और भव्यता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है कि स्थानीय लोककथाओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी स्थान पर देवी पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश की रचना की थी और उन्हें अपने कक्ष के द्वारपाल के रूप में नियुक्त किया था।

पौराणिक कथा
कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव अमरनाथ गुफा में तपस्या कर रहे थे, तब माँ पार्वती ने इसी स्थान पर स्नान करने का निश्चय किया। वह नहीं चाहती थीं कि कोई भी उनकी निजता में विघ्न डाले। इसलिए, उन्होंने अपने शरीर के मैल से एक बालक को उत्पन्न किया और उसे द्वारपाल के रूप में नियुक्त कर दिया। माँ पार्वती ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे।

समय बीतता गया और भगवान शिव तपस्या से लौटे। जब उन्होंने गुफा में प्रवेश करने का प्रयास किया, तो उस बालक ने उन्हें रोक दिया। भगवान शिव उस बालक को नहीं पहचानते थे और बालक भी उनके तेज से अनजान था। दोनों के बीच विवाद बढ़ गया और अंततः भगवान शिव ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर धड़ से अलग कर दिया।

जब माँ पार्वती को इस घटना की जानकारी हुई, तो उनका क्रोध चरम पर पहुँच गया। तब देवताओं ने उन्हें शांत करने का प्रयास किया और भगवान शिव ने अपनी भूल स्वीकार की। माँ पार्वती की इच्छा का सम्मान करते हुए, भगवान शिव ने उस बालक के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगाया और उसे जीवनदान दिया। यही बालक आगे चलकर भगवान गणेश के रूप में पूजित हुए, जिन्हें विघ्नहर्ता और प्रथम पूज्य माना जाता है।
ममलेश्वर महादेव मंदिर इसी अद्भुत कथा का साक्षी है। माना जाता है कि इसी पवित्र स्थान पर माँ पार्वती ने भगवान गणेश को द्वारपाल के रूप में स्थापित किया था। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग प्राचीन है और इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को शांति और सुकून प्रदान करती है। मंदिर परिसर में छोटे-छोटे अन्य मंदिर भी हैं, जो विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं।

ममलेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना माना जाता है। हालांकि इसके निर्माण की सटीक तिथि ज्ञात नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का मानना है कि यह मंदिर सदियों पुराना है और इसका संबंध प्राचीन हिंदू शासकों से रहा होगा। मंदिर की वास्तुकला में कश्मीरी शैली की झलक मिलती है, जो इसे एक विशेष पहचान देती है।

आज भी, ममलेश्वर महादेव मंदिर पहलगाम आने वाले श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। भक्त यहाँ भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा-अर्चना करते हैं और उस अद्भुत कथा को याद करते हैं, जिसने इस स्थान को एक विशेष महत्व प्रदान किया है। मंदिर का शांत वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य इसे एक ऐसा स्थान बनाता है, जहाँ आध्यात्मिक शांति के साथ-साथ प्रकृति की अनुपम छटा का भी अनुभव किया जा सकता है।

पहलगाम की यात्रा ममलेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह उस अटूट बंधन और दिव्य लीला का भी प्रतीक है, जिसने भगवान गणेश को हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बना दिया। तो अगली बार जब आप पहलगाम की यात्रा करें, तो इस रहस्यमयी और ऐतिहासिक मंदिर के दर्शन करना न भूलें, जहाँ माँ पार्वती ने अपने पुत्र को द्वारपाल बनाया था और जहाँ आज भी आस्था और इतिहास की अद्भुत कहानी जीवंत है।
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