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Written By WD Feature Desk
Last Updated : मंगलवार, 22 अप्रैल 2025 (16:37 IST)

पहलगाम पहला पड़ाव, इस जगह के इतिहास और खास स्थलों को जानकर चौंक जाएंगे

Pahalgam:पहलगाम पहला पड़ाव, इस जगह के इतिहास और खास स्थलों को जानकर चौंक जाएंगे - history and tourist places of pahalgam
Pahalgam:जम्मू और कश्मीर में से कश्मीर में स्थित है पहलगाम। यदि आप अमरनाथ या पंचतरणी जा रहे हैं तो पहले आपको पहलगाम जाना होगा। यहीं से अमरनाथ की यात्रा प्रारंभ होती है। यह स्थान बहुत प्राचीन है। इससे सिल्करूट का एक पड़ाव माना जाता रहा है। आपको इस जगह के बारे में जानकर आश्‍चर्य होगा। आओ जानते हैं इस जगह के बारे में। ALSO READ: बालटाल से अमरनाथ गुफा तक अब रोपवे, अमरनाथ यात्रा की अवधि भी बढ़ेगी
 
खूबसूरत प्राकृतिक नजारे: पहलगाम में हरे-भरे घास के मैदान, प्राचीन जंगल, प्राचीन झीलें, कोलाहोई ग्लेशियर ट्रेक, तरसर मार्सर ट्रेक, शेषनाग झील, तुलियन झील, लोबाब घाटी, लव पहलगाम व्यू पॉइंट, पहाड़ियों, घाटियों के साथ ही बहुत ही सुंदर नजारों को देखा जा सकता है। यह राजसी हिमालय पर्वतों का भी घर है। पहलगाम की मनमोहक घाटियों से होकर बहने वाली रोमांचकारी लिद्दर नदी में मछली पकड़ने के साथ ही राफ्टिंग भी होती है।
 
रोमांचकारी खेल: पहलगाम में लंबी पैदल यात्रा, ट्रैकिंग, फोटोग्राफी, स्लेजिंग, राफ्टिंग, घुड़सवारी, गोल्फ कोर्स और मछली पकड़ने जैसी कई तरह की रोमांच से भरी गतिविधियां भी होती है। यह क्षेत्र अरु घाटी, कोलाहोई ग्लेशियर, तुलियन झील और शेषनाग जैसे प्रतिष्ठित स्थानों के लिए ट्रेकिंग का प्रारंभिक बिंदु है। पहलगाम में ट्रेकिंग के लिए सबसे अच्छा समय अप्रैल से जून तक है।ALSO READ: शुरू हो रही है अमरनाथ यात्रा, जानिए तारीख और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया से जुड़ी सभी जानकारी
 
ओवेरा-अरु वन्यजीव अभयारण्य: 511 वर्ग किलोमीटर में फैला यह जंगल जम्मू और कश्मीर के पहलगाम में अरु घाटी के संरक्षित हिस्से में स्थित है। 1981 में इसे अभयारण्य के रूप में घोषित किया गया जहां प्रचुर मात्रा में वनस्पतियों और जीवों की विविधता के साथ, यह देखने योग्य कई पशु और पक्षी है।
 
ममलेश्वर मंदिर: पहलगाम में स्थित भगवान शिव को समर्पित ममलेश्वर मंदिर अपनी अद्भुत एवं सुंदर वास्तुकला के साथ आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह प्राचीन मंदिर राजा जयसीमा द्वारा बनवाया गया था जो पूरी तरह से पत्थर से निर्मित होने के कारण प्रसिद्ध है। इसे गणेशजी के पहरा देने वाला स्थान भी माना जाता है।
 
पहलगाम मार्केट: पहलगाम में खरीदारी करने के लिए अनूठा और जीवंत बाजार है जहां पर अनोखी दुकानें, विभिन्न प्रकार के स्थानीय हस्तशिल्प, स्मृति चिन्ह और पारंपरिक कश्मीरी वस्तुओं को प्रदर्शित करती हैं। यहां पर आप हाथ से बुने हुए पश्मीना शॉल, जटिल रूप से डिजाइन किए गए कश्मीरी कालीन, कढ़ाई वाले वस्त्र, और लकड़ी के हस्तशिल्प आदि खरीद सकते हैं। 
 
पहलगाव का इतिहास: पहलगाम को खानाबदोशों के गांव के रूप में जाना जाता है। बाहर से आने वाले लोग अक्सर यहीं रुकते थे। उनका पहला पड़ाव यही होता था। अनंतनाग जिले में बसा पहलगाम, श्रीनगर से लगभग 96 कि.मी. दूर है।ALSO READ: अमरनाथ यात्रा में रखें ये 10 सावधानी तो रहेंगे सुरक्षित
 
कश्मीरी भाषा में पहलगाम का अर्थ होता है चरवाहों का गांव। यानी गडेरियों का गांव। जबलपुर के पास एक गांव है गाडरवारा, उसका अर्थ भी यही है और दोनों ही जगह से ईसा मसीह का संबंध रहा है। ईसा मसीह खुद एक गडेरिए थे। ईसा मसीह का पहला पड़ाव पहलगाम था। इसके बाद जब जीसस श्रीनगर जा रहे थे तो उन्‍होंने एक स्‍थान पर ठहर कर आराम किया था और उपदेश दिए थे। क्‍योंकि जीसस ने इस जगह पर आराम किया इसलिए उन्‍हीं के नाम पर इस स्‍थान का नाम हो गया 'ईश मुकाम'। यह स्थान आज भी इसी नाम से जाना जाता है। ओशो रजनीश के अनुसार, ''पहलगाम एक छोटा-सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियां हैं। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा। जीसस ने जिस स्‍थान को चुना वह मुझे भी बहुत प्रिय है। मैंने जीसस की कब्र को कश्‍मीर में देखा है। इसराइल से बाहर कश्‍मीर ही एक ऐसा स्‍थान था जहां पर वे शांति से रह सकते थे। क्‍योंकि वह एक छोटा इसराइल था। यहां पर केवल जीसस ही नहीं मोजेज भी दफनाए गए थे। मैंने उनकी कब्र को भी देखा है। कश्मीर आते समय दूसरे यहूदी मोजेज से यह बार-बार पूछ रहे थे कि हमारा खोया हुआ कबिला कहां है? (यहूदियों के 10 कबिलों में से एक कबिला कश्मीर में बस गया था)। चच, राजपूत, मराठा, सिख, मुगल और ब्रिटिश शासन के दौरान, पहलगाम पर्यटकों के बीच एक लोकप्रिय गंतव्य बन गया था।
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