Sindoor and Mahabharat: महाभारत, भारतीय संस्कृति का एक ऐसा महाकाव्य है जो धर्म, न्याय, और प्रतिशोध की गाथा कहता है। इस कथा में कई ऐसे मार्मिक और शक्तिशाली प्रसंग हैं जो आज भी हमारे दिलों को झकझोर देते हैं। ऐसा ही एक प्रसंग है द्रौपदी के चीरहरण का, जिसने न केवल पांडवों को अपमानित किया बल्कि एक ऐसी ज्वाला भड़का दी जिसने पूरे आर्यावर्त को युद्ध की आग में झोंक दिया। इस अपमान के बाद द्रौपदी ने जो प्रतिज्ञा ली, वह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और न्याय के प्रति उनके अटूट विश्वास का प्रतीक थी।
द्रोपदी का अपमान: कुरुसभा में जब द्रौपदी को दांव पर लगाया गया और दुर्योधन के इशारे पर दुशासन ने उनके वस्त्र हरण करने का घृणित प्रयास किया, तो न्याय और मर्यादा की सारी सीमाएं लांघ दी गईं। उस असहाय अवस्था में, द्रौपदी ने अपनी लाज बचाने के लिए भगवान कृष्ण से प्रार्थना की और उनकी कृपा से उनका चीर बढ़ता ही गया। लेकिन उस अपमान की आग द्रौपदी के हृदय में धधकती रही।
क्यों द्रोपदी पोंछने वाली थी अपने माथे का सिन्दूर : उस अपमान की घड़ी में, द्रौपदी ने अपने केश खोल दिए थे। खुले बाल एक स्त्री के लिए अपमान और शोक का प्रतीक माने जाते हैं। द्रौपदी ने भरी सभा में यह प्रतिज्ञा ली कि जब तक वह अपने अपमान का बदला नहीं ले लेंगी, जब तक वह उन हाथों को अपने पतियों के सामने नहीं तुड़वा देंगी जिन्होंने उनका चीरहरण किया, तब तक वह अपने केश नहीं बांधेंगी। इतना ही नहीं, उस अपमान की पीड़ा इतनी गहरी थी कि द्रौपदी ने अपने माथे का सिंदूर भी पोंछने वाली होती है, लेकिन ऐन मौके पर गांधारी और कुंती उसका हाथ पकड़ लेती हैं और कहती हैं कि ऐसा मत करना द्रौपदी, वरना ये पूरा कुरुवंश समाप्त हो जाएगा। सिंदूर, जो एक विवाहित स्त्री के सुहाग का प्रतीक होता है, द्रौपदी के लिए उस दिन से दुख और अपमान की याद बन गया था।
द्रौपदी की प्रतिज्ञा का परिणाम : द्रौपदी की यह प्रतिज्ञा पांडवों के लिए एक चुनौती और प्रेरणा दोनों थी। उन्होंने उस अपमान का बदला लेने के लिए दृढ संकल्प लिया। वर्षों तक वह अपमान उनकी स्मृति में ताजा रहा और अंततः महाभारत का युद्ध छिड़ गया। इस युद्ध का एक मुख्य कारण द्रौपदी के साथ हुआ अन्याय भी था।
महाभारत के युद्ध में, पांडवों ने कौरवों को पराजित किया। भीम ने अपनी गदा से दुशासन की छाती चीर दी और उसकी भुजाएं तोड़ डालीं। द्रौपदी अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उस क्षण का इंतजार कर रही थीं। जब भीम ने दुशासन का वध कर दिया, तो द्रौपदी ने उसके रक्त से अपने खुले बालों को धोया। यह दृश्य न केवल भयानक था, बल्कि द्रौपदी के प्रतिशोध की प्रचंडता का भी प्रतीक था।
दुशासन के रक्त से अपने केश धोने के बाद, द्रौपदी ने अपने बाल बांधे और फिर से अपने मांग में लाल सिंदूर सजाया। यह सिंदूर अब उनके सुहाग का ही नहीं, बल्कि उनके द्वारा लिए गए कठोर संकल्प की पूर्ति का भी प्रतीक था। यह उस अपमान पर विजय का प्रतीक था जिसे उन्होंने कुरुसभा में सहा था।
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