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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 5 मई 2025 (16:19 IST)

युद्ध में विजयी होने के लिए करते हैं मां बगलामुखी का पूजन, भगवान श्रीकृष्ण ने भी की थी पूजा

युद्ध में विजयी होने के लिए करते हैं मां बगलामुखी का पूजन, भगवान श्रीकृष्ण ने भी की थी पूजा - mata baglamukhi is worshipped for victory in war
हिंदू धर्म में माता काली सहित सभी दस महाविद्याओं को युद्ध की देवी माना जाता है। इनकी कथाओं के अनुसार इन्होंने धरती पर से राक्षसों, असरों और दावनों के अत्याचार को खत्म करने के लिए युद्ध लड़ा था। यह सभी माता सती और उनकी बहनों के रूप हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष मां बगलामुखी की जयंती वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस बार यह तिथि 5 मई 2025 सोमवार के दिन है। मान्यता है कि इसी दिन मां बगलामुखी प्रकट हुई थीं और उन्होंने पृथ्वी को विनाशकारी शक्तियों से बचाया था। इसलिए यह दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। मां बगलामुखी को शत्रुओं का नाश करने वाली देवी माना जाता है। उनकी पूजा से भक्तों को शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
बगलामुखी देवी कौन है? मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से आठवीं महाविद्या हैं और उन्हें शक्ति की प्रचंड स्वरूपा देवी माना जाता है। इस दिन मां बगलामुखी की पूजा करने से जीवन के संकटों और बाधाओं का निवारण होता है। शत्रुओं और विरोधियों पर नियंत्रण प्राप्त होता है। कानूनी और व्यावसायिक मामलों में सफलता मिलती है। नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त होती है।
 
बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में माना जाता है। कहते हैं कि हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। एक अन्य मान्यता अनुसार देवी का प्रादुर्भाव भगवान विष्णु से संबंधित हैं। परिणामस्वरूप देवी सत्व गुण सम्पन्न तथा वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती हैं। परन्तु, कुछ अन्य परिस्थितियों में देवी तामसी गुण से संबंध भी रखती हैं। देवी त्रिनेत्रा हैं, मस्तक पर अर्ध चन्द्र धारण करती है, पीले शारीरिक वर्ण युक्त है, देवी ने पीला वस्त्र, आभूषण तथा पीले फूलों की माला धारण की हुई है। इसीलिए उनका एक नाम पितांबरा भी है। कहते हैं कि देवी बगलामुखी, समुद्र के मध्य में स्थित मणिमय द्वीप में अमूल्य रत्नों से सुसज्जित सिंहासन पर विराजमान हैं। देवी ने अपने बाएं हाथ से शत्रु या दैत्य के जिह्वा को पकड़ कर खींच रखा है तथा दाएं हाथ से गदा उठाए हुए हैं, जिससे शत्रु अत्यंत भयभीत हो रहा है। कई स्थानों में देवी ने मृत शरीर या शव को अपना आसन बना रखा है तथा शव पर ही आरूढ़ हैं तथा दैत्य या शत्रु की जिह्वा को पकड़ रखा हैं। यह रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं।
 
युद्ध में दिलाती है विजय, श्रीकृष्ण ने भी की थी पूजा: युद्ध में विजय दिलाने और वाक् शक्ति प्रदान करने वाली देवी- माता बगलामुखी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए की जाती है। इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति और वाक् सिद्धि के लिए की जाती है। कहते हैं कि नलखेड़ा में कृष्ण और अर्जुन ने महाभारत के युद्ध के पूर्व माता बगलामुखी की पूजा अर्चना की थी।
 
महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण की प्रेरणा पर अर्जुन ने कई जगह जाकर शक्ति की साधना की थी। उनकी साधना के वरदान स्वरूप शक्ति के विभिन्न रूपों ने पांडवों की मदद की थी। उन्हीं शक्ति में से एक माता बगलामुखी भी साधना भी की थी। कहते हैं कि युद्ध में विजय की कामना से अर्जुन और श्रीकृष्ण ने उज्जैन में हरसिद्ध माता और नलखेड़ा में बगलामुखी माता का पूजन भी किया था। वहां उन्हें युद्ध में विजयी भव का वरदान मिला था।