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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025 (17:38 IST)

महाभारत के अनुसार कब युद्ध करना चाहिए?

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Mahabharata War: वर्तमान में पहलगाम में आतंकवादी हमले के चलते भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है। पाकिस्तान लगातार भारत पर आतंकवादी हमले करवाकर निर्दोष भारतीयों और सेना के जवानों को मार रहा है। भारत न तो पाकिस्तान का कुछ बिगाड़ पा रहा है और न ही आतंकवादियों का। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद अब चारों ओर से मांग उठ रही है कि एक बार युद्ध करके पाकिस्तान से आरपार की लड़ाई लड़कर इसका किस्सा खत्म करो। हालांकि युद्ध के संबंध में महाभारत का ज्ञान क्या कहता है?ALSO READ: युद्ध के बारे में क्या कहती है महाभारत, जानिए 10 खास सबक
 
जब बातचीत से नहीं निकले समाधान तो युद्ध ही है एकमात्र विकल्प:
महाभारत में युद्ध केवल तभी किया जाना चाहिए जब सभी शांतिपूर्ण प्रयास विफल हो चुके हों। युद्ध को अंतिम उपाय माना जाता है। युधिष्ठिर ने कहा था कि युद्ध तभी शुरू करना चाहिए जब सभी बातचीत और समझौता प्रयास विफल हो चुके हों। युद्ध के लिए सही समय, परिस्थितियों के अनुसार, जब न्याय और धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो। 
 
महाभारत का युद्ध कई कारणों से हुआ था जिसमें सबसे बड़ा कारण भूमि या राज्य बंटवारे को लेकर था। बहुत दिनों की कशमकश के बाद भी जब कोई हल नहीं निकला तो फिर द्युतक्रीड़ा का आयोजन किया गया। द्युतक्रीड़ा में पांडव इन्द्रप्रस्थ सहित सबकुछ हार गए, अपमान सहना पड़ा, द्रौपदी का चीरहरण हुआ और अंतत: उनको 12 वर्ष का वनवास मिला।
 
वनवास काल खत्म होने के बाद दुर्योधन के पास यह प्रस्ताव भिजवाया गया कि अगर वे राज्य का बंटवारा चाहते हैं तो बंटवारे में हस्तिनापुर की राजगद्दी पर अपना दावा छोड़ देंगे। इतना सबकुछ हो जाने के बाद भीष्म पितामह के कहने पर धृतराष्ट्र ने संजय को दूत बनाकर पांड्वों से मित्रता और संधि का प्रस्ताव देकर भेजा। संजय ने उपलव्यनगर जाकर युधिष्ठिर से मुलाकात की और संधि का प्रस्ताव रखा। युधिष्ठिर तो यही चाहते थे कि युद्ध न हो। फिर भी उन्होंने श्रीकृष्ण की सलाह लेना उचित समझा और पांडवों की ओर से शांतिदूत बनाकर श्रीकृष्ण को हस्तिनापुर भेजा। उसने संजय को ये कहकर भेजा कि यदि वो उनको केवल 5 गांव ही दे दे तो वे संतोष कर लेंगे और संधि कर लेंगे।
 
राजदूत संजय के साथ श्रीकृष्ण हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गए। वहां श्रीकृष्ण ने पांडवों को संधि प्रस्ताव की शर्त को रखा। दुर्योधन ने अपने पिता को संधि प्रस्ताव स्वीकार करने से रोकते हुए कहा कि पिताश्री आप पांडवों की चाल समझे नहीं, वे हमारी विशाल सेना से डर गए हैं इसलिए केवल 5 गांव मांग रहे हैं और अब हम युद्ध से पीछे नहीं हटेंगे।ALSO READ: क्या भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होने वाला है, क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र
 
सभा में श्रीकृष्ण बोले, हे राजन! आप जानते हैं कि पांडव शांतिप्रिय हैं लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे युद्ध के लिए तैयार नहीं हैं। पांडव आपको पितास्वरूप मानते हैं इसलिए आप ही उचित फैसला लें...। श्रीकृष्ण ने अपनी बात जारी रखते हुए दुर्योधन से कहा कि दुर्योधन मैं तो केवल इतना चाहता हूं कि तुम पांडवों को आधा राज्य लौटकर उनसे संधि कर लो, अगर ये शर्त तुम मान लो तो पांडव तुम्हें युवराज के रूप में स्वीकार कर लेंगे।
 
धृतराष्ट्र ने समझाया कि पुत्र, यदि केवल 5 गांव देने से युद्ध टलता है, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है इसलिए अपनी हठ छोड़कर पांडवों से संधि कर लो ताकि ये विनाश टल जाए। दुर्योधन अब गुस्से में आकर बोला कि पिताश्री, मैं एक तिनके की भी भूमि उन पांडवों को नहीं दूंगा और अब फैसला केवल रणभूमि में ही होगा।
 
धृतराष्ट्र के बाद भीष्म पितामह और गुरु द्रोण ने भी दुर्योधन को समझाया लेकिन वो अपनी हठ पर अड़ा रहा और उसने अपनी मां गांधारी की बात भी नहीं मानी। तब शांतिदूत बने श्रीकृष्ण को ज्ञात हो गया कि अब शांति स्थापना की सभावना लुप्त हो चुकी है और वो वापस उपलव्यनगर लौट आए।ALSO READ: क्या भारत POK पर करेगा हमला? क्या कहते हैं ग्रह नक्षत्र और वायरल भविष्यवाणी
 
पांच गांव की तर भारत मांग रहा है POK: 
भारत ने पाकिस्तान से कई बार आतंकवाद को रोककर POK देने का कहा है परंतु पाकिस्तान, आईएसआई और वहां के आतंकवादी संगठनों ने भारत में हमला करके सभी तरह की शांतिवार्त को ठुकरा दिया है। पांडव अपने बंधु-बांधवों से लड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन श्रीकृष्ण ने समझाया कि जब किसी मसले का हल शांतिपूर्ण, वार्ता या किसी भी तरीके से नहीं होता तो फिर युद्ध ही एकमात्र विकल्प बच जाता है। कायर लोग युद्ध से पीछे हटते हैं। इसीलिए अपनी चीज को हासिल करने के लिए कई बार युद्ध करना पड़ता है। अपने अधिकारों के लिए कई बार लड़ना पड़ता है। जो व्यक्ति हमेशा लड़ाई के लिए तैयार रहता है, लड़ाई उस पर कभी भी थोपी नहीं जाती है। अहिंसा और शांति की बात करने वालों को ही लोग परेशान करते रहते हैं। 
 
राजा या योद्धा को नहीं करना चाहिए परिणाम की चिंता: कहते हैं कि जो योद्धा या राजा युद्ध के परिणाम की चिंता करता है वह अपने जीवन और राज्य को खतरे में डाल देता है। परिणाम की चिंता करने वाला कभी भी साहसपूर्वक न तो निर्णय ले पाता है और न ही युद्ध कर पाता है। जीवन के किसी भी मोड़ पर हमारे निर्णय ही हमारा भविष्य तय करते हैं। एक बार निर्णय ले लेने के बाद फिर बदलने का अर्थ यह है कि आपने अच्छे से सोचकर निर्णय नहीं लिया या आपमें निर्णय लेने की क्षमता नहीं है। इसलिए निर्णय लो और आगे बढ़ो, परिणाम की चिंता तो कायर लोग करते हैं।