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Last Modified: ऑबर्न (अमेरिका) , सोमवार, 14 अप्रैल 2025 (17:50 IST)

ट्रेड वॉर, ट्रंप के ट्रैरिफ के खिलाफ बाकी है चीन की आखिरी चाल

ट्रेड वॉर, ट्रंप के ट्रैरिफ के खिलाफ बाकी है चीन की आखिरी चाल - Trade war Chinas last move is pending against Donald Trumps tariff
डोनाल्ड ट्रंप ने दुनियाभर के व्यापारिक साझेदारों पर भारी शुल्क (टैरिफ) लगाने की अपनी योजना को जब वापस लिया तो एक प्रमुख देश चीन इसका अपवाद था। बाकी दुनिया को सभी अमेरिकी व्यापार साझेदारों पर 10 फीसदी के नए शुल्क से परे अतिरिक्त शुल्कों पर 90 दिनों की राहत दी गई है, लेकिन चीन को और अधिक दबाव महसूस होगा।
 
ट्रंप ने 9 अप्रैल, 2025 को चीनी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाकर 125 प्रतिशत कर दिया। ट्रंप के अनुसार, यह कदम बीजिंग की ओर से ‘वैश्विक बाजार के प्रति सम्मान के अभाव’ के कारण उठाया गया था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति शायद अमेरिकी शुल्क का सीधे सामना करने की बीजिंग की स्पष्ट इच्छा से परेशान थे।
 
कई देशों ने ट्रंप की अब विलंबित जवाबी शुल्क बढ़ोतरी के खिलाफ जवाबी कार्रवाई नहीं करने का विकल्प चुना, इसके बजाय बातचीत और संवाद का पक्ष लिया, लेकिन बीजिंग ने एक अलग रास्ता अपनाया।
 
चीन ने त्वरित और दृढ़ जवाबी उपायों के साथ पलटवार किया। चीन ने 11 अप्रैल को ट्रंप के कदमों को एक ‘मजाक’ बताकर खारिज कर दिया और अमेरिका के विरुद्ध अपना शुल्क बढ़ाकर 125 फीसदी कर दिया। दोनों अर्थव्यवस्थाएं अब एक चौतरफा, उच्च-तीव्रता वाले व्यापार गतिरोध में फंस गई हैं। और चीन पीछे हटने का कोई संकेत नहीं दे रहा है।
 
अमेरिका-चीन संबंधों के विशेषज्ञ के रूप में, मैं चीन से ऐसा करने की उम्मीद नहीं करूंगा। ट्रंप के शुरुआती कार्यकाल के दौरान पहले अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के विपरीत, जब बीजिंग उत्सुकता से अमेरिका के साथ बातचीत करना चाहता था, वही चीन अब कहीं अधिक लाभप्रद स्थिति में है।
 
वास्तव में बीजिंग का मानना ​​है कि वह अमेरिका को कम से कम उतना ही नुकसान पहुंचा सकता है जितना कि वह उसे पहुंचा सकता है। चीन को लगता है कि वह ऐसी स्थिति में अपनी वैश्विक स्थिति का विस्तार भी कर सकता है।
 
चीन के लिए बदला गया गणित
इसमें कोई संदेह नहीं है कि शुल्क लगाए जाने का चीन के निर्यातोन्मुख निर्माताओं पर गंभीर असर पड़ा है विशेष रूप से तटीय क्षेत्रों के निर्माताओं पर जो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए फर्नीचर, कपड़े, खिलौने और घरेलू उपकरण बनाते हैं।
 
लेकिन ट्रंप की ओर से 2018 में पहली बार चीन पर शुल्क बढ़ा दिया गया। इसके बाद से कई अंतर्निहित आर्थिक कारकों ने बीजिंग के गणित को काफी हद तक बदल दिया।
 
अहम बात यह है कि चीन की निर्यात-संचालित अर्थव्यवस्था के लिए अमेरिकी बाजार का महत्व काफी कम हो गया है। वर्ष 2018 में पहले व्यापार युद्ध की शुरुआत में, अमेरिका को किये जाने वाले निर्यात का हिस्सा चीन के कुल निर्यात का 19.8 फीसदी था जो वर्ष 2023 में गिरकर 12.8 फीसदी रह गया।
 
शुल्क चीन को अपनी ‘घरेलू मांग का विस्तार’ करने की रणनीति को और तेज करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जिससे उसके उपभोक्ताओं की खर्च करने की शक्ति बढ़ेगी और उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।
 
चीन ने 2018 के व्यापार युद्ध में मजबूत आर्थिक विकास के दौर में प्रवेश किया था, वर्तमान स्थिति काफी अलग है। रियल एस्टेट बाजार में सुस्ती, पूंजी पलायन और पश्चिमी ‘डी-कपलिंग’ ने चीनी अर्थव्यवस्था को लगातार मंदी के दौर में धकेल दिया है।
 
चीन के खिलाफ ट्रंप की शुल्क नीति बीजिंग को एक उपयोगी ‘बलि का बकरा’ भी दे सकती है, जिससे वह जनता की भावनाओं को भड़का सकता है और आर्थिक मंदी के लिए अमेरिकी आक्रामकता को दोषी ठहरा सकता है।
 
चीन यह भी समझता है कि अमेरिका चीनी वस्तुओं पर अपनी निर्भरता को आसानी से नहीं दूर कर सकता है, खासकर आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिहाज से। जबकि चीन से अमेरिका के प्रत्यक्ष आयात में कमी आई है, तीसरे देशों से आयात किए जाने वाले कई सामान अब भी चीन निर्मित घटकों या उसके द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कच्चे माल पर निर्भर हैं।
 
वर्ष 2022 तक अमेरिका 532 प्रमुख उत्पाद श्रेणियों के लिए चीन पर निर्भर था- जो 2000 के स्तर से लगभग चार गुना अधिक है - जबकि इसी अवधि में अमेरिकी उत्पादों पर चीन की निर्भरता आधी रह गई है।
 
इससे संबंधित जनमत पर आधारित आकलन यह है कि शुल्क बढ़ने से कीमतों में वृद्धि होने की उम्मीद है, जो अमेरिकी उपभोक्ताओं, विशेष रूप से ‘ब्लू-कॉलर’ मतदाताओं के बीच असंतोष पैदा कर सकता है। वास्तव में बीजिंग का मानना ​​है कि ट्रंप के शुल्क पहले से मजबूत अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेलने का जोखिम उत्पन्न करते हैं।
 
प्रतिशोध के शक्तिशाली उपकरण
बदले हुए आर्थिक परिवेश के साथ-साथ, चीन के पास अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोध के लिए कई रणनीतिक उपकरण भी हैं। यह विश्वभर में दुर्लभ मृदा तत्व (रेयर अर्थ एलिमेंट) की आपूर्ति श्रृंखला पर हावी है जो सैन्य और उच्च तकनीक उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण है। कई अनुमानों के अनुसार, यह अमेरिका के दुर्लभ मृदा तत्व के कुल आयात की लगभग 72 फीसदी आपूर्ति करता है।
 
चीन ने चार मार्च को 15 अमेरिकी संस्थाओं को अपनी निर्यात नियंत्रण सूची में रखा, उसके बाद नौ अप्रैल को 12 अन्य को भी शामिल किया गया। इनमें से कई अमेरिकी रक्षा ठेकेदार या उच्च तकनीक वाली कंपनियां थीं जो अपने उत्पादों के लिए दुर्लभ मृदा तत्वों पर निर्भर थीं।
 
चीन पोल्ट्री और सोयाबीन जैसे प्रमुख अमेरिकी कृषि निर्यात क्षेत्रों को लक्षित करने की क्षमता भी रखता है - ये उद्योग चीनी मांग पर बहुत अधिक निर्भर हैं और रिपब्लिकन की तरफ झुकाव वाले राज्यों में केंद्रित हैं। अमेरिका के सोयाबीन निर्यात में चीन की हिस्सेदारी लगभग आधी और अमेरिकी पोल्ट्री निर्यात में इसकी हिस्सेदारी लगभग 10 फीसदी है। बीजिंग ने चार मार्च को तीन प्रमुख अमेरिकी सोयाबीन निर्यातकों से आयात करने की मंजूरी को रद्द कर दिया।
 
तकनीकी पक्ष के लिहाज से कई अमेरिकी कंपनियां जैसे कि एप्पल और टेस्ला - चीनी विनिर्माण से गहराई से जुड़ी हुई हैं। शुल्क से उनके लाभ मार्जिन में काफी कमी आने का खतरा है। बीजिंग का मानना ​​है कि इसका इस्तेमाल ट्रंप प्रशासन के खिलाफ लाभ उठाने के स्रोत के रूप में किया जा सकता है। बीजिंग कथित तौर पर चीन में काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों पर विनियामक दबाव के माध्यम से जवाबी हमला करने की योजना बना रहा है।
 
यह तथ्य कि एलन मस्क के चीन में बड़े व्यापारिक हित हैं और इस चीज का फायदा बीजिंग ट्रंप प्रशासन को विभाजित करने के प्रयास के रूप में उठा सकता है। एलन मस्क ट्रंप के एक वरिष्ठ करीबी हैं और जिन्होंने शुल्क के मुद्दे पर अमेरिकी व्यापार सलाहकार पीटर नवारो से टकराव मोल लिया था।
 
चीन के लिए रणनीतिक अवसर?
बीजिंग को लगता है कि वह द्विपक्षीय आधार पर ट्रंप के व्यापक शुल्क का सामना कर सकता है, उसका यह भी मानना ​​है कि अपने ही व्यापारिक साझेदारों के खिलाफ अमेरिका के हमले ने अमेरिकी आधिपत्य को खत्म करने के लिए एक पीढ़ीगत रणनीतिक अवसर पैदा किया है।
 
यह बदलाव पूर्वी एशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को महत्वपूर्ण रूप से बदल सकता है। इस साल 30 मार्च को ही (ट्रंप द्वारा बीजिंग पर शुल्क बढ़ाने के बाद) चीन, जापान और दक्षिण कोरिया ने पांच वर्षों में पहली बार अपनी आर्थिक वार्ता की मेजबानी की थी और त्रिपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया था।
 
यह कदम विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि बाइडन प्रशासन के दौरान अमेरिका ने चीनी क्षेत्रीय प्रभाव का मुकाबला करने की अपनी रणनीति के तहत अपने जापानी और दक्षिण कोरियाई सहयोगियों को साधने के लिए सावधानी से काम किया था। बीजिंग के दृष्टिकोण से, ट्रंप की कार्रवाइयां हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सीधे तौर पर कम करने का अवसर प्रदान करती हैं।
इसी तरह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर ट्रंप के भारी शुल्क इन देशों को चीन के करीब धकेल सकते हैं। चीनी राज्य मीडिया ने 11 अप्रैल को घोषणा की थी कि राष्ट्रपति शी चिनफिंग 14-18 अप्रैल तक वियतनाम, मलेशिया और कंबोडिया की राजकीय यात्रा करेंगे, जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों के साथ ‘सर्वांगीण सहयोग’ को गहरा करना है।
 
गौरतलब है कि इन तीनों दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों पर ट्रंप प्रशासन द्वारा अब रोके गए जवाबी शुल्क को लगाया गया था। कंबोडियाई वस्तुओं पर 49 फीसदी, वियतनामी निर्यात पर 46 फीसदी और मलेशिया के उत्पादों पर 24 फीसदी जवाबी शुल्क लगाया गया था।
 
अब, यूरोपीय संघ और चीनी अधिकारी मौजूदा व्यापार बाधाओं पर बातचीत कर रहे हैं और जुलाई में चीन में एक पूर्ण शिखर सम्मेलन पर विचार कर रहे हैं। अंतत:, चीन ट्रंप की शुल्क नीति में अमेरिकी डॉलर की अंतरराष्ट्रीय स्थिति के कमजोर होने की संभावना देखता है। कई देशों पर लगाए गए व्यापक शुल्क ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में निवेशकों के विश्वास को हिलाकर रख दिया है, जिससे डॉलर के मूल्य में गिरावट आई है।
 
परंपरागत रूप से डॉलर और अमेरिकी ‘ट्रेजरी बॉन्ड’ को सुरक्षित संपत्ति के रूप में देखा जाता रहा है, लेकिन हाल ही में बाजार में उथल-पुथल ने उस स्थिति पर संदेह पैदा कर दिया है। इसके अलावा भारी शुल्क ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य और उसके ऋण की स्थिरता के बारे में चिंताएं बढ़ा दी हैं, जिससे डॉलर और अमेरिकी ट्रेजरी दोनों में भरोसा कम हो गया है।
 
ट्रंप के शुल्क से चीनी अर्थव्यवस्था के कुछ हिस्सों को नुकसान तो होगा ही, लेकिन ऐसा लगता है कि इस बार बीजिंग के पास खेलने के लिए और भी कई पत्ते (विकल्प) हैं। उसके पास अमेरिकी हितों को भारी नुकसान पहुंचाने के लिए सभी साधन उपलब्ध हैं और शायद इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रंप का व्यापक शुल्क युद्ध चीन को एक दुर्लभ और अभूतपूर्व रणनीतिक अवसर प्रदान कर रहा है। (द कन्वरसेशन)  भाषा Edited by: Sudhir Sharma
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