1971 में मॉक ड्रिल के दौरान क्यों ताजमहल को कर दिया था गायब, जानिए 54 साल पहले कैसे की थी देश ने तैयारी
Taj mahal during 1971 war : आगरा में यमुना नदी के किनारे शान से खड़ा ताजमहल, प्रेम का प्रतीक और भारत की अमूल्य धरोहर है। इसकी अद्भुत सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व इसे विश्व के सात आश्चर्यों में शुमार कराता है। लेकिन क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक समय ऐसा भी आया था जब इस शानदार इमारत को रातों-रात 'गायब' कर दिया गया था? सुनकर आश्चर्य होगा, लेकिन यह सच है। हालांकि, यह कोई जादू या चोरी नहीं थी, बल्कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान एक असाधारण मॉक ड्रिल का हिस्सा था।
उस दौर में, युद्ध की आशंकाएं चरम पर थीं और देश अपनी महत्वपूर्ण संपत्तियों को संभावित हवाई हमलों से बचाने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा था। ताजमहल, अपनी विशिष्ट सफेद संगमरमर की चमक के कारण दुश्मनों के लिए एक आसान निशाना बन सकता था। इसी खतरे को भांपते हुए, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India - ASI) और सेना ने मिलकर एक गुप्त और अद्वितीय योजना बनाई – ताजमहल को अस्थायी रूप से 'अदृश्य' कर देना।
कैसे छुपाया ताजमहल को:
यह कोई साधारण काम नहीं था। ताजमहल की विशालता और उसकी बारीक नक्काशी को छुपाना एक बड़ी चुनौती थी। इसके लिए, विशेषज्ञों ने एक विशेष रणनीति तैयार की। पूरे ताजमहल को बांस के ढांचे से ढका गया और फिर इसे जूट के बोरों और हरे रंग के कपड़ों से इस तरह से ढक दिया गया कि यह दूर से देखने पर रेत के टीले जैसा लगे। वन क्षेत्र का झांसा देने के लिए ताजमहल के आधार के चारों ओर झाड़ियां और टहनियां लगाईं गईं। दो हफ्ते से अधिक समय के लिए ताज महल के पास की सभी लाइटें काट दी गईं और पर्यटकों के आने पर रोक लगा दी गई। इस पूरी व्यवस्था का उद्देश्य दुश्मन के पायलटों को धोखा देना और भारत की ऐतिहासिक धरोहर को विनाश से बचाना था।
ताजमहल के अलवा इन इमारतों को भी ढंका गया
सिर्फ ताजमहल ही नहीं, बल्कि उस समय देश की अन्य महत्वपूर्ण इमारतों और औद्योगिक इकाइयों को भी इसी तरह के छलावरण से ढका गया था। हवाई अड्डों, तेल रिफाइनरियों और अन्य संवेदनशील प्रतिष्ठानों को भी जाल और हरे रंग के कपड़ों से ढक दिया गया था ताकि दुश्मन के विमान उन्हें पहचान न सकें। यह एक राष्ट्रव्यापी प्रयास था, जिसमें हर कोई अपनी तरफ से योगदान दे रहा था। इस दौरान पर्यटकों को भी प्रतिबंधित किया गया था।
बत्ती गुल और सायरन चालू
भारत के शहरों में, ब्लैकआउट का अभ्यास करवाया गया. इस दौरान घरों को सभी लाइटें बंद करने. स्ट्रीट लाइटें बंद कर दी जाती थीं. साथ ही, नकली हमलों की चेतावनी देने के लिए रात भर सायरन बजते रहते थे. उस समय घरों में चूल्हे पर खाना बनता था. चूल्हे की रोशनी बाहर ना जाए इसलिए खिड़कियों को मोटे कपड़े और कागज से ढकने का आदेश थे।
निकासी और बंकर प्रशिक्षण
इस मॉक ड्रिल के दौरान, निकासी और बंकर प्रशिक्षण भी महत्वपूर्ण हिस्सा थे। लोगों को यह सिखाया जाता था कि हवाई हमले की स्थिति में उन्हें कहां शरण लेनी है और कैसे सुरक्षित रहना है। स्कूलों, कॉलेजों और सार्वजनिक स्थानों पर बंकर बनाए गए थे, और लोगों को उनका उपयोग करने का प्रशिक्षण दिया गया था। नागरिकों को झुकने, खाली करने या निकटतम आश्रय में पहुंचने के लिए प्रशिक्षित किया गया था. यह सब युद्ध की तैयारियों का एक अभिन्न अंग था।
1971 का युद्ध भारत के लिए एक निर्णायक साबित हुआ और इसमें भारत को विजय मिली। ताजमहल और अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएं दुश्मन के हमलों से सुरक्षित रहीं। यह समय पूरे भारत के वासियों के लिए कभी ना भूलने वाली घटना थी।