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Written By Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 5 मई 2025 (18:06 IST)

रविंद्रनाथ ठाकुर कैसे बने रविंद्रनाथ टैगोर, जानिए सच

रविंद्रनाथ ठाकुर कैसे बने रविंद्रनाथ टैगोर, जानिए सच - why rabindranath thakur is called rabindranath tagore
why rabindranath thakur is called rabindranath tagore: रवींद्रनाथ टैगोर... यह नाम सुनते ही एक ऐसी शख्सियत की छवि उभरती है, जो न केवल एक महान कवि, लेखक, और दार्शनिक थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति भी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं से भारत को विश्व पटल पर एक नई पहचान दिलाई। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनका मूल नाम रवींद्रनाथ ठाकुर था? तो फिर यह 'टैगोर' कहां से आया और कैसे जुड़ा उनके नाम के साथ? आइए, इस रोचक तथ्य के पीछे की सच्चाई जानते हैं।
  • रवींद्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में एक प्रतिष्ठित और समृद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता, देबेंद्रनाथ ठाकुर, एक जाने-माने दार्शनिक और ब्रह्म समाज के प्रमुख सदस्य थे। परिवार में कला, साहित्य और संगीत का गहरा माहौल था, जिसने रवींद्रनाथ के प्रतिभा को बचपन से ही पोषित किया।
  • शुरुआत में, उन्हें रवींद्रनाथ ठाकुर के नाम से ही जाना जाता था। उनकी प्रारंभिक रचनाएं और पारिवारिक दस्तावेजों में भी इसी नाम का उल्लेख मिलता है। फिर कब और कैसे उनके नाम के साथ 'टैगोर' जुड़ गया?
  • दरअसल, 'टैगोर' कोई अलग से जोड़ा गया उपनाम नहीं है। यह उनके मूल पारिवारिक नाम 'ठाकुर' का ही आंग्ल रूपांतरण (Anglicized version) है। ब्रिटिश शासन के दौरान, बंगाली नामों के अंग्रेजी में लिप्यंतरण में अक्सर भिन्नताएं देखने को मिलती थीं। कई बंगाली उपनामों को अंग्रेजों द्वारा अपनी सुविधा के अनुसार अलग-अलग तरीकों से लिखा जाता था।
  • 'ठाकुर' शब्द, जो कि एक सम्मानित उपाधि है और जिसका अर्थ 'सरदार' या 'प्रमुख' होता है, को अंग्रेजों ने कई तरह से लिखा, जैसे कि Tagore, Tagor, और कभी-कभी Thakoor भी। रवींद्रनाथ के परिवार के कुछ सदस्य भी अपने नाम के साथ अलग-अलग अंग्रेजी स्पेलिंग का इस्तेमाल करते थे।
  • लेकिन रवींद्रनाथ ठाकुर के मामले में, 'Tagore' का स्पेलिंग सबसे अधिक प्रचलित हुआ और अंततः यही उनकी विश्वव्यापी पहचान बन गया। खासकर जब 1913 में उन्हें साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला, तो पश्चिमी दुनिया ने उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से ही जाना। नोबेल पुरस्कार की घोषणा और मीडिया कवरेज में इसी स्पेलिंग का इस्तेमाल किया गया, जिसने इसे स्थायी बना दिया।
  • यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि स्वयं रवींद्रनाथ ने अपने नाम के अंग्रेजी लिप्यंतरण को लेकर कोई विशेष आग्रह नहीं किया था। उनके लिए 'ठाकुर' और 'टैगोर' दोनों ही समान रूप से उनके पारिवारिक नाम को दर्शाते थे। हालांकि, वैश्विक स्तर पर उनकी पहचान 'रवींद्रनाथ टैगोर' के रूप में स्थापित हो गई।
  • आज भी, भारत में और बंगाली भाषी समुदाय में उन्हें अक्सर रवींद्रनाथ ठाकुर के नाम से ही संबोधित किया जाता है। वहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वे रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से अधिक जाने जाते हैं। यह नाम परिवर्तन किसी विशेष घटना या निर्णय का परिणाम नहीं था, बल्कि यह अंग्रेजी लिप्यंतरण की स्वाभाविक प्रक्रिया और वैश्विक स्वीकृति का नतीजा था। यह एक छोटा सा भाषाई बदलाव है, लेकिन यह उस महान शख्सियत की वैश्विक स्वीकृति और साहित्यिक योगदान की कहानी कहता है, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से दुनिया को आलोकित किया।
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