Neelachakra and Dhwaja : ओडिशा राज्य के पुरी में स्थिथ विशालकाय जगन्नाथ मंदिर के गुंबद पर स्थापित नीलचक्र और उसके ऊपर लहराता भगवान जगन्नाथ का ध्वज किसी आश्चर्य से कम नहीं है। इन दोनों के बारे में जानकर आप भी आश्चर्य करेंगे। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। ध्वज के पास नीलचक्र लगा है ध्वज विशालकाय नीलचक्र के ऊपर तक लहराता है। इसे सुदर्शन चक्र भी कहते हैं। आओ जानते हैं इसके रहस्य को।
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जगन्नाथ पुरी मंदिर के ध्वज की 10 खास बातें:
1. श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित त्रिकोणीय आकार का ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
2. यह ध्वज लाल, पीला, सफेद और केसरिया रंग का होता है।
3. इस ध्वज पर शिवजी का अर्ध चंद्र बना हुआ है, चंद्र के सूर्य का चिन्ह है।
4. प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा बदला जाता है जिन्हें चुनरा नियोग और गरूढ़ सेवक कहते हैं।
5. शिखर पर कई ध्वज लगाए जाते हैं जिसमें मुख्य ध्वज को 'पतित पावन बाना' कहा जाता है।
6. श्री मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर ध्वज हर दिन शाम 4 से 5 बजे के बीच बदला जाता है।
7. ऐसी मान्यता है कि यदि ध्वज एक दिन भी नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।
8. इस 20 मीटर लंबे ध्वज को 800 साल से चोला परिवार ही बदलता आ रहा है।
9. ऐसा भी कहते हैं कि पहले यह ध्वज इतना लंबा होता था कि यह समुद्र के उपर तक लहराता था और लोग इसे पकड़कर स्नान करते थे।
10. मुख्य ध्वज के नीचे की और लहराने वाली पताका को 'मानसिक बाना' कहते हैं। इस ध्वज को श्रद्धालु द्वारा भेंट किया जाता है।
11. इसके अलावा पादु खाकिया नामक 250 फीट एक लंबा बाना सुदर्शन चक्र से बाधते हैं जिसका अंतिम सिर श्रीमंदिर के उत्तरी भाग में स्थित पादुका कुंड या अमृत कुंड में डूबा रहता है। भक्तगण इस सिरे को निचोड़कर उस पानी को पीते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर के नीलचक्र की खास बातें:
1. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे नील चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव आपके सामने ही लगा दिखेगा।
2. नीलचक्र को सूदर्शन चक्र और इसे नीला पहिया भी कहा जाता है।
3. यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है।
4. यह भगवान जगन्नाथ का सबसे शक्तिशाली हथियार है।
5. यह करीब 36 फुट परीधी यानि गोलाई और 15 फुट ऊंचा है और इसमें 8 आरियां हैं।
6. पुराने समय में जो चक्र था वह समय के साथ नष्ट हो गया था।
7. भोई वंश के राजा प्रथम रामचंद्र देव ने ईस्वी सन 1594 में इस चक्र को बनवाकर मंदिर के शिखर पर स्थापित करवाया था। मादल पंचांग में इस बात की पुष्टि मिलती है।
8. जिन लोगों को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है, वे बाहर से इस चक्र का दर्शन करके खुद को धन्य मानते हैं।
9. मान्या अनुसार यह नीलचक्र बुरी शक्तियों से मंदिर और संपूर्ण शहर को बचाता है।
10. एक ऐतिहासिक विवरण के अनुसार, विशालकाय नीला चक्र को केवल मानव बल का उपयोग करके 214 फुट ऊंचे मंदिर के ऊपर रखा गया था। नीला चक्र के बारे में एक किंवदंती बताती है कि एक बार यह चक्र घमंडी हो गया था और भगवान जगन्नाथ ने उसका घमंडचूकर करके उसे नम्र किया, फिर उसे मंदिर के शिखर पर रख दिया।
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