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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 21 अप्रैल 2025 (12:50 IST)

विश्व पुस्तक दिवस पर मेरी किताब पर मेरी बात पर चर्चा

वामा साहित्य मंच की मासिक बैठक संपन्न

विश्व पुस्तक दिवस पर मेरी किताब पर मेरी बात पर चर्चा - Vama Sahitya Manchs monthly meeting concluded
प्रतिवर्ष 23 अप्रैल को विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस मनाया जाता है। उसी की महत्ता को समझते हुए वामा साहित्य मंच ने एक अलग हटकर आयोजन किया। मंच ने उन सदस्यों को बोलने का अवसर दिया जिनकी किताब प्रकाशित हो चुकी है।

मेरी किताब पर मेरी बात विषय पर आयोजित इस गोष्ठी में सदस्यों ने उत्साह से भाग लिया, इस आयोजन का उद्देश्य था कि जिन सखियों की किताब प्रकाशित नहीं हुई है वे भी प्रेरित हों और पुस्तक लाने के लिए तत्पर हों। साथ ही जिनकी पुस्तक आ चुकी हैं वे सदस्य भी प्रोत्साहित हो और अपनी किताब की रचना प्रक्रिया से सबको अवगत करा सके। 
 
इस अवसर पर अतिथि के रूप में मनीषा पाठक सोनी (एएसपी) शामिल हुईं। उन्होंने कहा कि पुस्तक दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल होना अद्भुत अनुभव रहा। यह एक ऐसा अवसर रहा जिसने स्वयं के अंदर की यात्रा का मार्ग प्रकाशित किया है।

यह आयोजन स्वर्णिम स्मृतियों में दर्ज रहेगा। उन्होंने अपनी किताब लैंगिक अपराधों की वैज्ञानिक विवेचना और अटकन-चटकन सुरक्षित बचपन पर भी प्रकाश डाला, जो पुलिस डायरी की सच्ची कहानियों से प्रेरित हैं।    
 
30 से अधिक प्रतिभागियों ने अपनी किताब पर चर्चा की। सरला मेहता ने किताब 'गुनगुनाते एहसास', पद्‍मा राजेन्द्र ने कृति मेरा मन तेरे साथ, डॉ. यशोधरा भटनागर ने लघुकथा संग्रह खिड़की, सुजाता देशपांडे ने किताब दिल कहे दिल से, रश्मि चौधरी ने श्वेत सतह, ज्योति जैन ने राजनीतिक पृष्ठभूमि पर रचे उपन्यास पार्थ तुम्हें जीना होगा पर और स्मृति आदित्य ने पत्रकारिता के खट्टे-मीठे अनुभव पर लिखी डायरी पुस्तक अब मैं बोलूंगी पर चर्चा की। 
 
अन्य सदस्यों में अनुपमा गुप्ता-गीता सार कृति, तनुजा चौबे-देहरी पर सजे ख्वाब, वंदना पुणतांबेकर सुगंधित शब्द, अमिता मराठे -मनोगत, आशा मुंशी-एक बंधन सूत का, डॉ. स्नेहलता श्रीवास्तव-चांद ने कहा, भावना दामले-मन का सागर, अर्चना मंडलोई- पीहर की देहरी, डॉ. आरती दुबे-एक नदी जो समंदर हो गई, शीला श्रीवास्तव- उपन्यास विश्वास, डॉ. अंजना चक्रपाणि मिश्र- मौन मुखर था, शालिनी बड़ोले- विष पी गई मीरा (कहानी संग्रह), निरुपमा वर्मा रौशनाई मेरे अक्श की (काव्य संग्रह), डॉ. पूर्णिमा भारद्वाज-सुवासित समिधाएं (काव्य संग्रह), डॉ. किसलय पंचोली-नो पार्किंग (कहानी संग्रह), सुषमा चौधरी-playing chess with destiny, डॉ. प्रगति जैन -The Power of Pause, डॉ प्रेम कुमारी नाहटा-टोपी पंखों वाली और स्नेहा काले ने कृष्णार्पण पर अपनी बात रखी।
 
कार्यक्रम का संचालन मंजूषा मेहता ने किया, सरस्वती वंदना-वंदना पुणतांबेकर ने की, स्वागत सुशीला डांगे और स्नेहा काले ने किया तथा आभार सहसचिव डॉ. अंजना चक्रपाणि मिश्रा ने माना।
 
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