मनीष कुमार
भारत के एक और पड़ोसी देश नेपाल में भी उबाल है। 2008 में राजशाही का दौर खत्म होने के बाद से ही नेपाल अशांत है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के 17 साल में 14 सरकारों का बदलना राजनीतिक स्थिति को समझने के लिए काफी है।
नेपाल में संविधान को लागू हुए दस साल भी पूरे नहीं हुए हैं। राजशाही और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के बदले अब एक बड़ा तबका राजशाही और हिंदू राष्ट्र की वापसी की मांग कर रहा है। जाहिर है, राजशाही के खात्मे के बाद जनता से किए गए वादों की कसौटी पर नेपाली लोकतंत्र के रहनुमा खरे नहीं उतर सके।
लोकतंत्र के लिए आंदोलनों के साथ नेपाल में शुरू हुई उथल पुथल लोकतांत्रिक देश बनने के बाद भी नहीं थमी। इसी क्रम में एकबार फिर लोग सड़कों पर उतरे लोग राजशाही की वापसी के साथ ही नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। नेपाल के कुछ लोग इसे अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान एवं परंपराओं को बचाने के लिए जरूरी मानते हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकार सरित पांडा ने डीडब्ल्यू से कहा, नेपाल में प्रदर्शन कर रहे लोग राजनेताओं के भ्रष्टाचार से तो चिढ़े हुए हैं ही, चीन की बढ़ती दखलंदाजी भी इन्हें परेशान कर रही। हवाई अड्डा, राजमार्ग समेत इंफ्रास्ट्रक्चर की कई योजनाओं पर चीन का कब्जा है। लोग ऐसा देश नहीं चाहते जो उपनिवेश की तरह चीन के निकट हो।'' भारतीय उपमहाद्वीप में बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद नेपाल में जारी उथल-पुथल से भारत में चिंता का उभरना स्वाभाविक है।
ईसाई आबादी में बढ़ोतरी
नेपाल में 80 फीसदी हिंदू, नौ प्रतिशत बौद्ध तथा दो फीसदी ईसाई है। बीते सालों में यहां धर्मांतरण बढ़ने की भी खबरें हैं। खासकर सुदूर इलाकों में ईसाई आबादी तेजी से बढ़ी है। यहां काफी समय से ईसाई मिशनरियां सक्रिय हैं।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में एक दशक में ईसाइयों की आबादी 68 प्रतिशत तक बढ़ी है। 2001 में नेपाल में केवल एक लाख ईसाई थे, जबकि 2011 में यह संख्या बढक़र तीन लाख 75 हजार से अधिक हो गई और 2021 में इनकी आबादी करीब 4.75 पांच लाख हो गई है।
यह स्थिति तब है, जब 1951 तक नेपाल में एक भी ईसाई नहीं था।1961 में इनकी संख्या बढक़र 458 हो गई। जब-जब नेपाल अशांत रहा, तब-तब यहां तेजी से धर्मांतरण हुआ। इसमें विशेष तौर पर तेजी तब से आ गई, जब 2008 में नेपाल धर्मनिरपेक्ष (सेक्युलर) राष्ट्र घोषित हो गया।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार यहां हो रहे धर्मांतरण में दक्षिण कोरिया की मिशनरियों की काफी अधिक भूमिका है। करीब दो दशक पहले वहां से मिशनरियों का यहां आना प्रारंभ हुआ था। अब यहां इनकी संख्या बीस हजार तक पहुंच गई है।
ताजा आंकड़ों में नेपाल में चर्च की संख्या 7,758 हो गई है। पांडा कहते हैं, धर्मांतरण की इस स्थिति के लिए वाम दल भी जिम्मेदार हैं। 1995 से जब इनका प्रभाव खासकर पर्वतीय प्रदेश में बढ़ना शुरू हुआ तो इन्होंने लोगों को समझाना शुरू किया कि इस धर्म से उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला है। इससे धर्मांतरण की राह काफी हद तक आसान हुई।'' परेशान लोग कभी पैसे की लालच में तो कभी स्वास्थ्य या शिक्षा के नाम पर धर्म बदलने लगे।
इस्लाम का भी दबदबा बढ़ा
नेपाल के राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक यहां मुस्लिम आबादी लगातार बढ़ रही है। इनकी जनसंख्या का प्रतिशत 5।09 है, जबकि 2011 में इनकी आबादी 4.4 प्रतिशत थी। यानि मुस्लिमों की आबादी 0।69 प्रतिशत बढ़ गई।
नेपाल में 2001 में मुस्लिम आबादी 9.54 लाख थी, जो 2021 में बढक़र 14 लाख से अधिक हो गई। सीमावर्ती इलाकों में मस्जिदों तथा मदरसों की संख्या में खासा इजाफा हुआ है। सीमावर्ती इलाकों की अर्थव्यवस्था पर भी मुस्लिमों का प्रभाव बढ़ रहा है।
अपुष्ट रिपोर्टों में इसके लिए पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को जिम्मेदार माना गया है। मीडिया की खबरों से पता चलता है कि नेपाल को केंद्र बनाकर यहां से भारत में नकली भारतीय मुद्रा (नोट) की आपूर्ति की गई। भारत-नेपाल के बीच खुली सीमा होने के कारण आपराधिक गतिविधियों के बाद भारत से भागने के लिए नेपाल के रास्ते का इस्तेमाल आसान है। बीते दिनों में ऐसे कई आतंकवादियों को पकड़ा गया जो भारत से भागकर नेपाल पहुंचे थे।
नेपाल पर चीन का असर
नेपाल में जब माओवाद सफल होने के बाद चीन का असर बढ़ने की बात कही जाती है। चीन ने नेपाल में कर्ज का जाल फैलाया और बुनियादी ढांचे समेत विकास के तमाम संसाधनों पर अपना कब्जा जमाना शुरू कर दिया। 2017 के बाद नेपाल चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में शामिल हो गया, जिसका मकसद ट्रांस हिमालयन मल्टी डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क तैयार करना था।
बीआरआई के तहत चीन नेपाल में कई परियोजनाओं के लिए धन दे रहा है। इनमें सड़क, रेलवे और हवाई अड्डे की परियोजनाएं शामिल हैं। इसके अलावा चीन बिजली उत्पादन व वितरण और पर्यटन के क्षेत्र में भी निवेश कर रहा है। विकास के नाम पर एक ओर चीन नेपाली भू-संपत्तियों पर कब्जा तो कर ही रहा है, मंदारिन भाषा का प्रचार-प्रसार कर नेपाल की संस्कृति और भाषा को भी प्रभावित कर रहा है।
मधेशियों-पहाड़ियों के बीच की खाई
नेपाल की वह आबादी जो तराई इलाके में निवास करती है, मधेशी के नाम से जानी जाती है। इसका अधिकतर भाग भारतीय सीमा क्षेत्र के करीब है और भारत के सीमावर्ती इलाके के लोगों से इनका रोटी-बेटी का नाता है। वहीं पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले लोग पहाड़ी के नाम से जाने जाते हैं।
राजशाही खत्म होने के बाद से मधेशियों और पहाड़ियों के बीच की खाई बढ़ने लगी। जानकार बताते हैं कि नेपाल की राजनीति में पहाड़ियों का दबदबा रहा, जबकि मधेशियों को उनका उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला। माओवादी आंदोलन के अधिकतर नेता पर्वतीय प्रदेश से ही आते हैं।
कहा जाता है कि आंदोलन के दौरान माओवादियों ने तराई इलाके में जमकर लूटपाट की, यहां तक की हत्याएं भी हुईं। मधेशियों ने भी संविधान बनाने के दौरान काफी प्रदर्शन किया जो 2015 में हिंसक हो गया। इसमें कई मधेशी मारे गए। भारी उपद्रव के बाद नेपाल सरकार ने मधेशियों की कुछ मांगों को माना।
तेजी से बढ़ता युवाओं का पलायन
नेपाल में अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक साल 2024 में नेपाल की विकास दर 3.1 प्रतिशत थी। यहां की जीडीपी का एक चौथाई हिस्सा विदेशों में रह रहे नेपालियों से आता है। अधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार नेपाल में बेरोजगारी की दर 12 प्रतिशत से अधिक है, जबकि युवाओं में यह दर 20 प्रतिशत के करीब हो गई है।
एक रिपोर्ट के अनुसार बीते एक साल में पांच लाख से अधिक लोग यहां से पलायन कर गए, जिनमें अधिकतर युवा हैं। नेपाली युवा भारत के अलावा अरब और यूरोपीय देशों का रुख कर रहे हैं। 'द राइजिंग नेपाल' की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में आठ लाख से अधिक नेपाली युवाओं ने विदेशी रोजगार के लिए देश छोड़ा। इसी तरह 2023 में ही एक लाख से ही अधिक छात्रों ने विदेश में अध्ययन का विकल्प चुना।
बेरोजगारी के अतिरिक्त भ्रष्टाचार भी आम लोगों के निराशा की एक वजह है। काठमांडू पोस्ट स्टेट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में नेपाल में भ्रष्टाचार के 28,000 से अधिक मामले दर्ज किए गए। इसके अलावा नेपाल में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। 73 प्रतिशत आबादी को पीने का साफ पानी नहीं मिलता तो वहीं 35 लाख लोग बिजली की सुविधा से वंचित हैं।