क्या 21 दिन, रोज़ 1 घंटा 'मैं स्वस्थ हूं', कहने से से ठीक हो सकते हैं लाइलाज रोग! समझिए एमिल कुए की विधि का रहस्य
conscious autosuggestion: क्या हमारे शब्द और विचार हमारे शरीर पर इतना गहरा प्रभाव डाल सकते हैं कि वे बीमारियों को भी ठीक कर दें? यह सवाल सदियों से पूछा जाता रहा है। लेकिन फ्रांसीसी मनोवैज्ञानिक और फार्मासिस्ट एमिल कुए (Emile Coué) ने करीब एक सदी पहले इस विचार को एक व्यवस्थित रूप दिया। उन्होंने 'सचेतन आत्मसुझाव' (Autosuggestion) की एक ऐसी विधि विकसित की, जिसका मूल मंत्र था - "हर दिन, हर तरह से, मैं बेहतर और बेहतर होता जा रहा हूँ।" आज हम इसी सिद्धांत पर आधारित एक विशिष्ट प्रयोग की चर्चा कर रहे हैं, जिसने कई लोगों का ध्यान खींचा है: लगातार 21 दिनों तक, प्रतिदिन एक घंटा पूरी श्रद्धा और एकाग्रता से "मैं स्वस्थ हूं" दोहराना। आइए जानें इस विधि की गहराई और उन दावों के बारे में :
अवचेतन मन की शक्ति पर एमिल कुए के विचार :
एमिल कुए का मानना था कि हमारा अवचेतन मन (Subconscious Mind) हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नियंत्रण रखता है। उनका तर्क था कि यदि हम सचेत रूप से सकारात्मक सुझावों को अपने अवचेतन मन तक पहुंचा सकें, तो हम अपनी सेहत और जीवन में सुधार ला सकते हैं। उनका प्रसिद्ध वाक्य "Every day, in every way, I'm getting better and better" इसी सिद्धांत पर आधारित था। यह एक सामान्य सुझाव था जिसे दिन में कई बार दोहराने की सलाह दी जाती थी, खासकर सुबह उठने के बाद और रात को सोने से पहले।
'मैं स्वस्थ हूं' का 21 दिवसीय प्रयोग:
इसी मूल विचार को लेकर एक विशिष्ट अभ्यास विकसित हुआ है:
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अवधि: लगातार 21 दिन।
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दैनिक समय: प्रतिदिन कम से कम 1 घंटा।
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विधि: शांत जगह पर बैठें, आँखें बंद करें (या खुली रखें, जैसा सुविधाजनक हो) और लगातार दोहराएं - "मैं स्वस्थ हूं, मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं।"
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भावना: केवल शब्दों को यंत्रवत न दोहराएं, बल्कि स्वस्थ होने की भावना को महसूस करें। कल्पना करें कि आपका शरीर पूरी तरह से निरोगी और ऊर्जावान है।
क्यों 21 दिन और 1 घंटा?
माना जाता है कि किसी नई आदत को बनाने या किसी विचार को अवचेतन मन में गहराई तक स्थापित करने में लगभग 21 दिन लगते हैं। प्रतिदिन एक घंटे का समर्पित अभ्यास यह सुनिश्चित करता है कि यह सकारात्मक सुझाव सामान्य विचारों के शोर में खो न जाए और अवचेतन मन पर अपनी छाप छोड़ सके।
लाइलाज बीमारियों पर प्रभाव के दावे:
इंटरनेट और व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से ऐसी कई कहानियां सामने आई हैं जहां लोगों ने दावा किया है कि इस 21-दिवसीय अभ्यास ने उन्हें उन बीमारियों से उबरने में मदद की जिन्हें डॉक्टर लाइलाज या बहुत कठिन मानते थे। इनमें ऑटोइम्यून डिसऑर्डर, क्रोनिक दर्द, अवसाद और यहाँ तक कि कुछ मामलों में कैंसर जैसी गंभीर स्थितियों का भी जिक्र मिलता है।
यह कैसे काम कर सकता है?:
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प्लेसबो प्रभाव: सकारात्मक विश्वास और उम्मीद शक्तिशाली प्लेसबो प्रभाव पैदा कर सकते हैं, जिससे शरीर की अपनी उपचार प्रणाली सक्रिय हो सकती है।
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तनाव में कमी: लगातार सकारात्मक पुष्टि तनाव हार्मोन (जैसे कोर्टिसोल) के स्तर को कम कर सकती है, जो कई बीमारियों में योगदान करते हैं। शांत मन बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को बढ़ावा देता है।
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अवचेतन प्रोग्रामिंग: लगातार दोहराव अवचेतन मन को 'री-प्रोग्राम' कर सकता है, जिससे शरीर की कार्यप्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मन और शरीर गहरे रूप से जुड़े हुए हैं।
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व्यवहार परिवर्तन: स्वस्थ महसूस करने का विश्वास व्यक्ति को स्वस्थ जीवन शैली अपनाने के लिए प्रेरित कर सकता है (बेहतर खान-पान, व्यायाम आदि), जो उपचार में सहायक होता है।
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