जब फिल्मों में दिखा भारत का जज़्बा, ग्राउंड जीरो की रिलीज से पहले डालिए वॉर फिल्मों पर एक नजर
भारतीय सिनेमा ने लंबे समय से 'वॉर' पर आधारित कहानियों को अपनाया है और कुछ बेहद दमदार फिल्में दर्शकों को दी हैं। कई जबरदस्त फिल्में बनी हैं जो न सिर्फ दिल को छूती हैं, बल्कि हमें हमारे अपने इतिहास और संघर्षों की भी याद दिलाती हैं। खासकर कश्मीर को लेकर जो हालात रहे हैं।
कश्मीर हालात पर बनी फिल्में जैसे हैदर, उरी, शेरशाह और द कश्मीर फाइल्स, इन सबने मिलकर एक ऐसा वॉर जॉनर तैयार किया है जो हमारी ज़मीन की बात करता है। कह सकते हैं कि ये फिल्में हमारे लिए सेविंग प्राइवेट रयान या 1917 जैसी विदेशी फिल्मों से कम नहीं हैं।
एक्सेल एंटरटेनमेंट की फिल्म ग्राउंड ज़ीरो की रिलीज़ से पहले, चलिए नज़र डालते हैं भारत की कुछ सबसे असरदार और यादगार वॉर फिल्मों पर-
ग्राउंड जीरो
फिल्म ग्राउंड जीरो बीएसएफ कमांडेंट नरेंद्र नाथ धर दुबे की सच्ची कहानी से प्रेरित है, जिन्होंने 2001 में भारतीय संसद और गुजरात के अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड को ढूंढ़ निकालने वाले मिशन का नेतृत्व किया था। ये फिल्म कश्मीर घाटी से जुड़ा एक और असरदार अध्याय सामने लाती है, इस बार बीते पचास सालों में बीएसएफ के सबसे अहम ऑपरेशनों में से एक पर फोकस है।
हैदर
1995 के उथल-पुथल वाले कश्मीर की बैकड्रॉप में बनी 'हैदर' फिल्म जम्मू-कश्मीर में भारतीय प्रशासन के खिलाफ जारी अलगाववादी उग्रवाद पर आधारित है, एक ऐसा इलाका जो 1947 से भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद का केंद्र रहा है। यह फिल्म व्यक्तिगत और राजनीतिक संघर्षों को मिलाकर उस संघर्ष की कड़वी हकीकत को सामने लाती है।
उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक
सच्ची घटनाओं पर आधारित 'उरी' फिल्म 2016 में हुए उरी हमले के जवाब में भारत की कार्रवाई को दिखाती है। 28 सितंबर को, हमले के ठीक 11 दिन बाद, भारतीय सेना ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी। यह फिल्म उस रणनीतिक ऑपरेशन को देशभक्ति के जज़्बे के साथ पेश करती है।
शेरशाह
शेरशाह कैप्टन विक्रम बत्रा की ज़िंदगी पर आधारित एक बायोग्राफिकल वॉर फिल्म है, जो कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे। 7 जुलाई 1999 को, उन्होंने जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में पॉइंट 4875 के पास दुश्मन से लड़ते हुए अपनी जान गंवाई थी।
द कश्मीर फाइल्स
द कश्मीर फाइल्स 1990 में कश्मीरी पंडितों के घाटी से पलायन पर बनी फिल्म है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे उस दौर की दर्दनाक हकीकत को सालों तक दबाकर रखा गया। फिल्म इन घटनाओं को नरसंहार बताती है, जिसे लेकर कई जानकारों की राय अलग है। लेकिन फिल्म यही सवाल उठाती है, आखिर इतनी बड़ी त्रासदी पर इतने सालों तक चुप्पी क्यों रही?