Akshaya thiruthiyai 2025: अक्षय तृतीया का पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इसे आखा तीज भी कहते हैं। अक्षय शब्द का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो या जिसका कभी नाश न हो। मान्यता के अनुसार कहते हैं कि यदि व्यक्ति दान-पुण्य, स्नान, यज्ञ, जप आदि जैसे शुभ कर्म करे तो इससे मिलने वाले शुभ फलों का कभी क्षय अर्थात नहीं होता है। आओ जानते हैं इस दिन का और क्या है महत्व।
1. बताया जाता है कि वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है। जिसमें प्रथम व विशेष स्थान अक्षय तृतीया का है। यानी इस तिथि के दिन मुहूर्त देखे बगैर कार्य करते हैं क्योंकि पूरा दिन ही शुभ माना जाता है। इस दिन स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है। अक्षय तृतीया (अखातीज) को अनंत-अक्षय-अक्षुण्ण फलदायक कहा जाता है। जो कभी क्षय नहीं होती उसे अक्षय कहते हैं।
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2. इस दिन विवाह करना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए विवाह के लिए यह सबसे शुभ मुहूर्त होता है।
3. इस दिन सोना खरीदना भी बहुत शुभ होता है।
4. इस दिन भगवान नर-नारायण सहित परशुराम और हय ग्रीव का अवतार हुआ था। इसके अलावा, ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का जन्म भी इसी दिन हुआ था। मां गंगा का अवतरण भी इसी दिन हुआ था।
5. बद्रीनारायण के कपाट भी इसी दिन खुलते हैं। त्रेतायुग का प्रांरभ भी इसी तिथि को हुआ था। इसी दिन सतयुग और त्रैतायुग का प्रारंभ हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ।
7. अक्षय तृतीया के दिन ही वृंदावन के बांके बिहारी जी के मंदिर में श्री विग्रह के चरणों के दर्शन होते हैं। इसी दिन सुदामा भगवान कृष्ण से मिलने पहुंचे थे।
8. अक्षय तृतीया के दिन पंखा, जौ, गेहूँ, चने, सत्तू, दही, चावल, दूध से बने पदार्थ, नमक, घी, चीनी, सब्जी, फल, इमली और वस्त्र वगैरह का दान अच्छा माना जाता है।
9. इसी दिन पितृ श्राद्ध करने का भी विधान है। पितरों (पूर्वजों) के नाम से दान करके किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए।
10. अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा विधि-विधान से करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
11. अक्षय तृतीया के दिन से ही वेद व्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। इसी दिन महाभारत की लड़ाई खत्म हुई।