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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 2 मई 2025 (17:55 IST)

कौन थे केएम करियप्पा, जिनके नाम से कांपता था पाकिस्तान, पाक सेना प्रमुख अयूब खान थे उनके अंडर में

कौन थे केएम करियप्पा, जिनके नाम से कांपता था पाकिस्तान, पाक सेना प्रमुख अयूब खान थे उनके अंडर में - Who was KM Cariappa, whose name made Pakistan tremble
KM Cariappa: के.एम. करियप्पा के नाम से मशहूर कोडनान मडप्पा करियप्पा भारत के पहले चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे। वे भारत के पहले फिल्ड मार्शल भी थे। 15 जनवरी 1949 में उन्हें सेना प्रमुख नियुक्त किया गया। इसके बाद से ही 15 जनवरी को सेना दिवस' के रूप में मनाया जाता है। वे वो 1953 में रिटायर हो गय थे। उनके अंडर में पहले पूरी पाकिस्तानी सेना होती थी। जानिए दिलचस्प कहानी।
 
आज हम जिस भारतीय सेना को देखते हैं वो केएम करियप्पा की बनाई हुई सेना है। पाकिस्तान करियप्पा के नाम से भी कांपता था। उनका निकनेम किपर था। 28 जनवरी 1899 को कर्नाटक के कोडागू में उनका जन्म हुआ और 15 मई 1993 को उन्होंने आखिरी सांस ली। जब आरक्षण की बात उठी तो करियप्पा ही थे जिन्होंने कहा था कि सेना में यह नहीं चलेगा और इससे में होने नहीं दूंगा। उनकी जिद के चलते ही सेना में आरक्षण लागू नहीं होने दिया। यही नहीं उन्होंने किसी सलाम या नमस्कार को नहीं 'जय हिंद' कहने को सेना का अभिवादन वाक्य बनाया। उनकी पत्नी का नाम  मुथू माचिया और बेटे का नाम केसी करियप्पा था।
 
कैसे बने इंडियन चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ?
भारत जब आजाद हुआ तो उसके 2 साल बाद बाद सारे नेता और आर्मी ऑफिसर के साथ पंडित जवाहर लाल नेहरू ने एक मीटिंग ली। इस मीटिंग में पंडित नेहरू ने कहा कि मैं समझता हूं कि हमें किसी अंग्रेज़ को इंडियन आर्मी का चीफ बनाना चाहिए, क्योंकि हमारे पास सेना को लीड करने का एक्सपीरियंस नहीं है. सभी ने नेहरू का समर्थन किया क्योंकि कोई भी उस समय नेहरू का विरोध नहीं करता था। किसी की हिम्मत नहीं थीकि नेहरू की बात का कोई विरोध करें।
 
तभी इसी मीटिंग के बीच एक आर्मी अफसर ने कहा, 'मैं कुछ कहना चाहता हूं।'
पंडित नेहरू ने उसकी ओर देखते हुए कहा, कहिए।
आर्मी अफसर ने कहा, 'हमारे पास तो देश को भी लीड करने का भी एक्सपीरियंस नहीं है तो क्यों न हम किसी ब्रिटिश को भारत का प्रधानमंत्री बना दें?'
यह सुनकर सभी अवाक् रह गए, मीटिंग रूम में सन्नाटा छा गया। इस सन्नाटे को तोड़ते हुए नेहरू ने पूछा कि क्या आप इंडियन आर्मी के पहले जनरल बनने को तैयार हैं?
 
उस आर्मी आफसर ने कहा, नहीं सर मैं नहीं लेकिन सर हमारे बीच में एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिसको ये जिम्मेदारी दी जा सकती है जिनके पास एक्सपीरियंस है। उनका नाम है लेफ्टिनेंट जनरल करियप्पा।...वह आर्मी ऑफिसर, जिसने आवाज उठायी थी, उनका नाम था लेफ्टिनेंट जनरल नाथू सिंह राठौर। इस तरह केएम करियप्पा भारत के पहले चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने।
 
1965 के युद्ध में जब करियप्पा के बेटे को पाकिस्तान ने बना लिया था युद्धबंदी:
भारत पाकिस्तान का युद्ध चल रहा है। उस समय तो रिटायर हो चुके थे लेकिन उनका बेटा के.सी. करियप्पा भारतीय वायुसेना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा था। वह युद्ध के मोर्चे पर था। लड़ते लड़ते वह पाकिस्तानी की सीमा में घुसकर पाकिस्तानी विमानों को मार गिरा रहे थे तभी उन्होंने देखा कि उनके विमान में पीछे आग लग गई है तब उन्हें अंदाजा नहीं था कि वे किस की सीमा में है। उन्होंने एन टाइम पर खुद इंजेक्ट किया और वे पीठ के बल नीचे गिरे। थोड़ी ही देर में उन्होंने देखा कि उन्हें पाक आर्मी ने घेर लिया है। उस समय करियप्पा रिटायर हो चुके थे और वे कर्नाटक के अपने गृहनगर मेरकारा में रह रहे थे।
 
उस समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान थे। अय्यूब खान ने रेडियो पाकिस्तान पर यह सुना कि पाकिस्तानी सेना ने भारतीय वायुसैनिक नंदा करियप्पा को युद्धबंदी बना लिया गया है तो यह सुनकर अयूब खान चौंक गए। उन्होंने अपने अफसरों से पूछताछ कि तो अफसरों ने बताया कि वह अपना नाम के.सी. करियप्पा बता रहा है।
 
दरअसल अय्यूब खान नाम सुनकर इसलिए चौंक गए थे क्योंकि देश के बंटवारे से पहले अयूब खान एमके करियप्पा के अंडर काम कर चुके थे। यानी जब बंटवारा नहीं हुआ था तब फौजे अंग्रेजों के शासन में ही थी। एमके करियप्पा को जब अंग्रेजों ने वजीरिस्तान पर एक ऑपरेशन का नेतृत्व सौंपा था तब अय्यूब उनके अंडर में ही रहकर लड़ाई लड़ रहा था।
 
जब अयूब को पता चला कि करियप्पा का बेटा युद्धबंदी बना लिया गया है, तो उन्होंने तुरंत करियप्या को फोन लगाया और उनके बेटे को रिहा करने की बात कही। लेकिन केएम करियप्पा ने यह कहकर इनकार कर दिया कि जो 51 युद्दबंदी बनाए गए हैं वे सभी मेरे बेटे हैं। यदि रिहा करना ही है तो सभी को करो अन्यथा कोई जरूरत नहीं। यह सुनकर अयूब खान का दिल प्रसन्न हो गया। बाद में जब दोनों सेनाओं के युद्ध बंदी छोड़े गए थे तब केएम करियप्पा  के बेटे को भी छोड़ा गया। बाद में अयूब की पत्नी और उनका बड़ा बेटा अख़्तर अयूब उनसे मिलने भी आए। एयरमार्शल करियप्पा कहते हैं, "वो मेरे लिए स्टेट एक्सप्रेस सिगरेट का एक कार्टन और वुडहाउस का एक उपन्यास लेकर आए थे।"
 
के.सी. करियप्पा ने बाद में अपनी किताब में कहीं यह जिक्र किया था कि पंडित जवाहर लाल नेहरू को इस बात का डर था कि मेरे पिता उनका तख्तापलट कर सकते हैं, इसीलिए उन्होंने 1953 में मेरे पिता को ऑस्ट्रेलिया का हाई कमिश्नर बनाकर देश से बाहर भेज दिया था।
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