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Written By WD Feature Desk
Last Modified: शुक्रवार, 9 मई 2025 (12:24 IST)

India Pakistan War: बलूचिस्तान से जैसलमेर और सिंदूर का कनेक्शन, मिलेगा माता का आशीर्वाद

India Pakistan War: बलूचिस्तान से जैसलमेर और सिंदूर का कनेक्शन, मिलेगा माता का आशीर्वाद - connection of sindoor with balochistan, you will get blessings from the mother goddess
India Pakistan War: पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाकर POK और पंजाब में आतंकवादियों के 9 ठिकानों को तबाह करके पाकिस्तान में हड़कंप मचा दी है। इसके जवाब में पाकिस्तान ने भारत के 15 शहरों पर ड्रोन और मिसाइल से हमला किया जिसे भारत ने न केवल नाकाम किया बल्कि उसके एयर डिफेंस सिस्टम को भी ध्वस्त कर दिया। दूसरी ओर बलूचिस्तान में विद्रोहियों ने पाकिस्तानी सेना की नाक में दम कर रखा है। इसी संदर्भ में जानिए कि भारत के जैसलमेर और ऑपरेशन सिंदूर में सिंदूर का क्या है बलूचिस्तान से कनेक्शन। ALSO READ: बलूचिस्तान के बारे में 5 खास बातें, भविष्यवाणी- पाकिस्तान से होगा अलग?
 
बलूचिस्तान पर पाकिस्तान का कब्जा:
पाकिस्तान ने पीओके और बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा कर रखा है। 4 अगस्त 1947 को लार्ड माउंटबेटन, मिस्टर जिन्ना, जो बलूचों के वकील थे, सभी ने एक कमीशन बैठाकर तस्लीम किया और 11 अगस्त को बलूचिस्तान की आजादी की घोषणा कर दी गई। वादे के मुताबिक उसे एक अलग राष्ट्र बनना था 1 अप्रैल 1948 को पाकिस्तानी सेना ने कलात पर अभियान चलाकर कलात के ख़ान को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। बाद में 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने संपूर्ण बलूचिस्तान को अपने कब्जे में ले लिया। तभी से अब तक बलूच अपनी आजादी के लिए पाकिस्तानी सेना से लड़ रहे हैं। पाकिस्तानी सेना ने अब तक 2 लाख से ज्यादा बलूचों को मार दिया है। 
 
बलूचिस्तान की माता हिंगलाज का सिंदूर से कनेक्शन: बलूचिस्तान में हिंगोल नदी के समीप हिंगलाज क्षेत्र में सुरम्य पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है माता हिंगलाज का मंदिर है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिंगुला का अर्थ सिन्दूर है। यह एक प्रकार का सिंदूर भी होता है और हिंगुल एक लाल रंग का खनिज अयस्क है। हिंगुल का उपयोग आयुर्वेद में कई तरह के रोगों के इलाज में किया जाता है।
 
हिंगलाज माता का जैसलमेर की माता से कनेक्शन: जैसलमेर से करीब 130 किमी दूर स्थित माता तनोट राय (आवड़ माता) का मंदिर है। तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है। तानोट माता ने 1965 को भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केंद्र बन गई। 17 से 19 नवंबर 1965 को शत्रु ने तीन अलग-अलग दिशाओं से तनोट पर भारी आक्रमण किया। दुश्मन ने तनोट माता के मंदिर के आसपास के क्षेत्र में करीब 3 हजार गोले बरसाए पंरतु अधिकांश गोले अपना लक्ष्य चूक गए। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।ALSO READ: बलूचिस्तान पर पाकिस्तानी कब्जे की संपूर्ण कहानी
 
सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।  सैनिकों की तनोट की इस शानदार विजय को देश के तमाम अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाया।
51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ:
हिंगलाज ही वह जगह है, जहां माता सती का सिर गिरा था। यहां माता सती कोटटरी रूप में जबकि भगवान शंकर भीमलोचन भैरव रूप में प्रतिष्ठित हैं। बृहन्नील तंत्र अनुसार यहां सती का 'ब्रह्मरंध्र' गिरा था। यहां पर माता को नानी कहा जाता है। यहां की यात्रा को 'नानी का हज' भी कहा जाता है। हिंगलाज क्षत्रिय समाज की कुलदेवी हैं। यहां का मंदिर गुफा मंदिर है। मंदिर की परिक्रमा में गुफा भी है। यात्री गुफा के एक रास्ते से दाखिल होकर दूसरी ओर निकल जाते हैं। मंदिर के साथ ही गुरु गोरखनाथ का चश्मा है। मान्यता है कि माता हिंगलाज देवी यहां सुबह स्नान करने आती हैं। हिंगलाज मंदिर में दाखिल होने के लिए पत्थर की सीढिय़ां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर में सबसे पहले श्री गणेश के दर्शन होते हैं जो सिद्धि देते हैं। सामने की ओर माता हिंगलाज देवी की प्रतिमा है जो साक्षात माता वैष्णो देवी का रूप हैं। 
 
महापुरुषों ने किया है यहां पर तप:
माता हिंगलाज मंदिर में पूजा-उपासना का बड़ा महत्व है। कहा जाता है कि इस प्रसिद्ध मंदिर में माता की पूजा करने को गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव, दादा मखान जैसे महान आध्यात्मिक संत आ चुके हैं। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि ने यहां घोर तप किया था। उनके नाम पर आसाराम नामक स्थान अब भी यहां मौजूद है।  जनश्रुति है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी यात्रा के लिए इस सिद्ध पीठ पर आए थे।
 
मां के मंदिर के नीचे अघोर नदी है। कहते हैं कि रावण वध के पश्चात् ऋषियों ने राम से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति हेतु हिंगलाज में यज्ञ करके कबूतरों को दाना चुगाने को कहा। श्रीराम ने वैसे ही किया। उन्होंने ग्वार के दाने हिंगोल नदी में डाले। वे दाने ठूमरा बनकर उभरे, तब उन्हें ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति मिली। वे दाने आज भी यात्री वहां से जमा करके ले जाते हैं।
 
महाशक्ति का है यहां पर निवास और चमत्कार: 
1. मुस्लिम काल में इस मंदिर पर मुस्लिम आक्रांताओं ने कई हमले किए लेकिन कहते हैं कि जो भी इस मंदिर को तोड़ने जाता वह हवा में उल्टा लटक जाता था। भारत विभाजन के बाद जब यह हिस्सा पाकिस्तान के अधीन हो गया तब यहां पर कई कट्टरपंथियों ने एकत्र होकर इस मंदिर को तोड़ने पहुंचे लेकिन आश्चर्य की सभी के सभी हवा में उल्टे लटक गई। सभी आतंकवादियों ने तब हथियार डालकर माता से क्षमा मांगी। इसके बाद से ही यहां पर मुस्लिम लोग भी मन्नत मांगने जाने लगे और इसे नानी माता कहने लगे।
 
2. इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता व्याप्त है। कहा जाता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं।
 
3. मंदिर से कई तरह के चमत्कार जुड़े हैं। यहां कई चमत्कारी घटनाएं होने की चर्चा है, जैसे कि पाकिस्तान-भारत युद्ध के दौरान मंदिर के पूर्णत: सुरक्षित रहने की बात कही जाती है। यहां जाने वाले भक्तों का मानना है कि एक दिन माता का यह क्षेत्र मुक्ति होगा और बड़ी संख्या में लोग यहां पर दर्शन के लिए जा सकेंगे।
 
माता का चूल: 
एक बार यहां माता ने प्रकट होकर वरदान दिया कि जो भक्त मेरा चुल चलेगा उसकी हर मनोकामना पुरी होगी। चुल एक प्रकार का अंगारों का बाड़ा होता है जिसे मंदिर के बहार 10 फिट लंबा बनाया जाता है और उसे धधकते हुए अंगारों से भरा जाता है जिस पर मन्नत धारी चल कर मंदिर में पहुंचते हैं और ये माता का चमत्कार ही है की मन्नत धारी को जरा सी पीड़ा नहीं होती है और ना ही शरीर को किसी प्रकार का नुकसान होता है, लेकिन आपकी मन्नत जरूर पूरी होती है। हालांकि आजकल यह परंपरा नहीं रही।
 
बलूचिस्तान से जुड़ी भविष्यवाणी:
महर्षि अरविंद और मीरा अलफासा: भारत के महान अध्यात्मिक गुरु महर्षि अरविंद की शिष्या अलफासा ने 5 साल पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी कि पाकिस्तान और भी टुकड़े होंगे और एक दिन पाकिस्तान नाम का कोई देश नहीं रहेगा।
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