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Last Updated : शनिवार, 3 मई 2025 (08:42 IST)

द गॉडफादर (1972) 50 साल बाद भी दिलों पर कर रही है राज: संगठित अपराध की कालजयी गाथा

The Godfather movie review
द गॉडफादर, 1972 में रिलीज हुई वह फिल्म है जिसने न सिर्फ हॉलीवुड सिनेमा बल्कि वैश्विक फिल्म निर्माण की दिशा ही बदल दी। यह फिल्म आज भी प्रेरणा का स्रोत है और इसके प्रभाव की छाप हम हाल ही में बनी फिल्मों जैसे 'एनिमल' और वेब सीरीज़ 'मिर्जापुर' में भी देख सकते हैं। संगठित अपराध, सत्ता के लालच और पारिवारिक मूल्यों के बीच की जटिलता को "द गॉडफादर" ने इतनी सूक्ष्मता और प्रामाणिकता के साथ दिखाया कि 53 वर्षों बाद भी इसका प्रभाव जस का तस है।
 
फिल्म दिखाती है कि कैसे अपराधी संगठन समानांतर सरकार की तरह काम करते हैं, राजनेताओं और न्यायपालिका को नियंत्रित कर समाज पर अपना प्रभुत्व स्थापित करते हैं।
 
"द गॉडफादर" प्रसिद्ध उपन्यासकार मारियो प्यूजो के इसी नाम के उपन्यास पर आधारित है। निर्देशक फ्रांसिस फोर्ड कोपोला ने इस कठिन उपन्यास को बड़े परदे पर इतनी गहराई और संवेदनशीलता के साथ उतारा कि यह सिनेमाई इतिहास का मील का पत्थर बन गई। 
 
1970 के दशक में जब हॉलीवुड एक बदलाव के दौर से गुजर रहा था, कोपोला ने अपने असाधारण निर्देशन से फिल्म निर्माण की परिभाषा ही बदल दी।
 
 फिल्म का बजट लगभग 6-7 मिलियन डॉलर था और इसने बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ कमाई की, जो उस समय एक जबरदस्त सफलता थी।
 
फिल्म में मार्लन ब्रैंडो (डॉन वीटो कोरलियोन), एल पचीनो (माइकल कोरलियोन), जेम्स कान (सन्नी कोरलियोन), रॉबर्ट डुवाल (टॉम हेगन) और डायन कीटन (के एडम्स) जैसे दिग्गज कलाकारों ने ऐसे जीवंत प्रदर्शन दिए कि वे किरदार आज भी अमर हो गए हैं।
 
कहानी 1945 से 1955 के दस वर्षों की अवधि की है जिसमें इतावली अमेरिकी अपराधी परिवार कोरलियॉन अपने दबदबे के जरिये खौफ बना कर रखते हैं डॉन वीटो कोरलियॉन अपने बेटों सैंटिनो, फ्रेडो और माइकल के जरिये अपने 'पारिवारिक व्यवसाय' को चलाता है। इसमें उसके ढेर सारे सहयोगी भी हैं। 
 
डॉन वीटो जिसे गॉडफादर भी कहा जाता है उसके भी कुछ उसूल है। वह व्हाइट पाउडर यानी ड्रग्स के कारोबार को करने से यह जानते हुए भी ठुकरा देता है कि उसमें बहुत सारा पैसा है। यही बात झगड़े की जड़ बनती है, परिवार में भी और बाहरी अपराधियों में भी। इसको लेकर वफादारी, दुश्मनी, षड्यंत्र, साजिश का ऐसा खेल रचा जाता है कि आंच सभी तक पहुंचती है। 
 
फिल्म गॉडफादर की सोच उसके काम करने की शैली को सूक्ष्मता के साथ दिखाती है। एक ओर वह बिलकुल पारिवारिक आदमी है क्योंकि उसका मानना है कि यदि कोई पुरुष अपने परिवार को समय नहीं देता वो मर्द नहीं है और दूसरी ओर वह अत्यंत खतरनाक और सूझबूझ से अपने कार्य को अंजाम देने वाला अपराधियों की दुनिया का सरताज है। 
 
उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसकी पकड़ ढीली होती है, लेकिन फिर फिल्म में माइकल के उदय को दिखाया जाता है जो पहले अपने पारिवारिक व्यवसाय का हिस्सा नहीं था, लेकिन पिता पर हुए कातिलाना हमले के बाद वह इस काले धंधे में उतरता है और उसका गॉडफादर के रूप में उदय होता है। 
 
कहानी की पेचीदगी स्क्रीनप्ले में इस सफाई के साथ बुनी गई है कि दर्शक अपनी जगह से हिल नहीं पाते। रोमांच, थ्रिल से भरपूर यह फिल्म अपनी गति से चलती है और हर किरदार को गहराई के साथ पेश करती है। किरदारों के मन के अंदर क्या चल रहा है यह स्क्रीन पर आप महसूस करते हैं क्योंकि लेखन बहुत ही ऊंचे दर्जे का है।  
 
"द गॉडफादर" में फ्रांसिस फोर्ड कोपोला ने सिनेमा को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। लेखकों की कल्पना को फिल्म में ट्रांसलेट करने में निर्देशक फ्रांसिस फोर्ड कोपोला ने कोई कमी नहीं छोड़ी है। उन्होंने फिल्म को अत्यंत भव्य लुक दिया है, उत्कृष्ट कलाकारों का चयन किया और सिनेमा के जादू का भरपूर उपयोग किया है।
 
उन्होंने संगठित अपराध की कहानी को सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे परिवार, निष्ठा और सत्ता के जटिल रिश्तों से जोड़ा। कोपोला ने पात्रों की मनःस्थिति को गहराई से दिखाया और हर दृश्य को धीमी गति और सूक्ष्म भावनाओं से गढ़ा। 
 
उनका दृष्टिकोण था कि अपराध की दुनिया को यथार्थवादी और मानवीय तरीके से प्रस्तुत किया जाए। सेट डिजाइन, सिनेमैटोग्राफी और संवादों में भी उनका सौंदर्यबोध स्पष्ट झलकता है। उन्होंने एक पूरी दुनिया रच दी, जो दर्द, सत्ता, प्रेम और विश्वासघात से भरी हुई थी। 
 
बढ़िया बात यह रही कि अपराध को ग्लैमराइज नहीं किया, बल्कि उसकी भयावहता को पारिवारिक संवेदनाओं के साथ पिरोया। हर फ्रेम में एक कहानी है, हर संवाद में एक टीस। कोपोला का यह दृष्टिकोण ही इस फिल्म को कालजयी बनाता है।
 
किसी को 1945 से 1955 के बीच का अमेरिका या अपर क्लास की जीवनशैली देखना हो तो इस फिल्म के जरिये उस समय में जाया जा सकता है। कॉपोला ने उस दौर की कारें, हवेलियां, फैशन, स्टाइल को इस फिल्म में खूबसूरती के साथ समेटा है। कोपोला ने 1940 के दशक के अमेरिका को इतनी जीवंतता से उतारा कि लगता है मानो हम उसी दौर में सांस ले रहे हों। 
 
फिल्म में बहुत ज्यादा हिंसक दृश्य नहीं है, लेकिन छोटे-छोटे दृश्य दहला देते हैं। जैसे फिल्म प्रोड्यूसर के बिस्तर में घोड़े का कटा हुआ खून से लथपथ सिर रखना। इस सीन की कॉपी कई फिल्मों में हुई है। शूटिंग के दौरान असली घोड़े का कटा सिर का इस्तेमाल हुआ था। 
 
एक ऐसा ही सीन है जिसमें किरदार को आंख में गोली मार दी जाती है और चश्मा चकनाचूर होता है और खून निकल पड़ता है। उस दौर में तकनीक इतनी उन्नत नहीं थी और यह सीन देखते ही बनता है। 
 
माइकल द्वारा सोलोत्त्ज़ो और कैप्टन मैकक्लास्की की हत्या वाला सीन माइकल के चरित्र परिवर्तन की शुरुआत को बेहद तनावपूर्ण और सिनेमाई उत्कृष्टता के साथ दर्शाता है।
 
फिल्म का पहला सीन जहां बाहर विवाह समारोह की खुशी और भीतर डॉन वीटो कोरलियोन द्वारा समस्याओं का समाधान करना, यह दृश्य परिवार और सत्ता के द्वंद्व को अद्भुत तरीके से प्रस्तुत करता है।
 
सैंटिनो का अपने जीजा को सड़क पर मारना वाला सीन भी कमाल का है। एक ओर पिटाई हो रही है और दूसरी ओर बच्चे पानी की फूटी लाइन का आनंद उठा रहे हैं। बेरहम पिटाई और उसके साथ चलती सामान्य जिंदगी यानी मानवीय संवेदनाओं और हिंसा का अद्भुत कंट्रास्ट पेश किया गया है। 
 
'द गॉडफादर' की सिनेमैटोग्राफी को गॉर्डन विलिस ने एक अद्वितीय स्तर पर पहुंचाया। उन्होंने इस फिल्म में रोशनी और अंधेरे का अद्भुत संतुलन स्थापित किया। हर फ्रेम इस तरह तैयार किया गया है मानो वह एक पेंटिंग हो, खासतौर पर आउटडोर के सीन। 
 
इनडोर सीन में गहरी छायाएं, सटीक रोशनी और भावनाओं को व्यक्त करने वाले क्लोजअप्स ने फिल्म की गंभीरता और वातावरण को और अधिक प्रभावशाली बना दिया। विलिस की सिनेमैटोग्राफी ने पात्रों की आंतरिक उथल-पुथल को भी पर्दे पर दिखाया। 'द गॉडफादर' के कई दृश्य आज भी सिनेमा प्रेमियों के लिए उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
 
फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक दर्शकों पर गहरा असर छोड़ता है। फिल्म के सारे टेक्नीकल डिपार्टमेंट का काम काबिल-ए-तारीफ है। 
 
फिल्म के सारे कलाकारों ने बेहतरीन अभिनय किया है। मार्लन ब्रैंडो ने डॉन वीटो कोरलियोन के रूप में 'शक्ति और करुणा' का अद्भुत संतुलन दिखाया। उनका धीमा, रुक-रुक कर बोलना और गंभीर मुख-मुद्रा इस किरदार को हमेशा के लिए स्मरणीय बना देती है। हर तरह की परिस्थिति में शांत बने रहना और खराब सिचुएशन को भी सधे हुए तरीके से हैंडल करने वाले किरदार को उन्होंने मैच्योरिटी से अदा किया है।  
 
एल पचीनो का परिवर्तन, मासूम बेटे से एक क्रूर माफिया बॉस तक, फिल्म का सबसे बड़ा हाइलाइट है। उन्होंने अपने किरदार के विकास को अपने अभिनय के जरिये दर्शाया है। जेम्स कान, रॉबर्ट डुवाल और डायन कीटन सहित सारे अभिनेताओं ने अपने-अपने किरदारों को बेहतरीन तरीके से अदा किया है। 
 
"द गॉडफादर" सिर्फ एक अपराध गाथा नहीं है, यह परिवार, सत्ता, निष्ठा और नैतिकता के जटिल रिश्तों की बारीक पड़ताल है। फिल्म की कहानी समय से परे है। यह आज भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है जितनी 1972 में थी। निर्देशन, पटकथा, सिनेमैटोग्राफी और अभिनय के उच्चतम स्तर का सम्मिलित प्रदर्शन इस फिल्म को सिनेमा प्रेमियों के लिए एक अनिवार्य अनुभव बनाता है।